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: मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलिंपिक के पहले दिन रजत पदक जीतकर इतिहास बना दिया है। मीराबाई चानू वेटलिफ्टिंग में भारत को पदक दिलाने वाली दूसरी खिलाड़ी हैं। इस दौरान उनकी बालियों ने भी सभी का ध्यान खींचा, जो कि ओलंपिक के छल्लों के आकार की हैं। इनको बनवाने के लिए मीराबाई की मां ने अपने जेवर बेच दिए थे।

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उनकी मां ने ये बालियां 5 साल पहले उन्हें तोहफे में दी थी। उनकी मां को उम्मीद थी कि इससे उनका भाग्य चमकेगा। रियो 2016 खेलों में ऐसा नहीं हुआ, लेकिन मीराबाई ने टोक्यो ओलंपिक में अपनी मां का सपना सच कर दिया।उठाने से शुरू हुआ था मीराबाई का ओलिंपिक सफर, मां ने जेवर बेचकर बनवाई थी ये बालियां

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चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता। वह बचपन से ही भारी वजन उठाने में मास्टर रही हैं। आठ अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में जन्मी मीराबाई का सपना तीरंदाज बनने का था,

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लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया, क्योंकि आठवीं की किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी का जिक्र था। इंफाल की ही रहने वाली कुंजारानी भारतीय वेटलिफ्टिंग के इतिहास की दिग्गज महिलाओं में से हैं। कोई भी भारतीय महिला वेटलिफ्टर कुंजारानी से ज्यादा पदक नहीं जीत पाई हैं।

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आठवीं कक्षा में वेटलिफ्टर बनने का फैसला करने के बाद मीराबाई का सफर शुरू हुआ। उन्होंने साल 2014 में ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किग्रा भारवर्ग में भारत के लिए रजत पदक जीता। इसके बाद उनके जीतने पदक जीतने का सिलसिला कभी नहीं रुका। टोक्यो ओलिंपिक में उन्होंने अपने बचपन का ओलिंपिक पदक जीतने का सपना पूरा किया।

मीराबाई के पदक जीतने से उनकी मां साईखोम ओंग्बी तोंबी लीमा बहुत खुश हैं। उनके खुशी के आंसू रुक ही नहीं रहे हैं। लीमा ने कहा, andquot;मैंने बालियां टीवी पर देखी थीं, जो मैंने उसे 2016 में रियो ओलिंपिक से पहले दी थीं।

मैंने इन्हें अपने सोने के जेवर बेचकर और अपनी बचत से बनवाया था, जिससे कि उसका भाग्य चमके और उसे सफलता मिले। इन्हें देखकर मेरे आंसू निकल गए। उसके पिता की आंखों में भी खुशी के आंसू थे।andquot;

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...