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इन दिनों हर कोई उच्च शिक्षा हासिल करके अच्छी नौकरी पाने की होड़ में लगा हुआ है, फिर चाहे इसके लिए उन्हें अपने स्वास्थ्य और दिनचर्या को ही दाव पर क्यों न लगाना पड़े। आज के आधुनिक युग में हर कोई अच्छी नौकरी चाहता था, ताकि वह शानदार घर के साथ-साथ हर तरह की सुख सुविधा का लाभ उठा सके।

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लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है कि इस तरह की तमाम सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए 9 से 5 की उबाऊ नौकरी ही की जाए, क्योंकि आज लोगों के सामने आमदानी बढ़ाने के लिए कई तरह के विकल्प मौजूद हैं। ऐसा ही कुछ किया छत्तीसगढ़ के रहने वाले सचिन काले (Sachin Kale) ने, जो अपने यूनिक आइडिया के चलते आज सालाना 2 करोड़ की कमाई कर रहे हैं।

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सचिन काले (Sachin Kale) और उनकी आरामदायक नौकरी

सचिन काले (Sachin Kale) छत्तीसगढ़ के बिलासपुर (Bilaspur) शहर के रहने वाले हैं, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक आरामदायक ज़िन्दगी जी रहे थे। उन्होंने बीई मैकेनिकल में इंजीनियरिंग, फाइनेंस में एमबीए, एलएलबी और इकॉनॉमिक्स में पीएचडी की डिग्री हासिल की है, जाहिर से बात है इतनी सारी डिग्री लेने के बाद सचिन काले को एक अच्छी नौकरी मिलनी ही थी।

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सचिन की पहली नौकरी साल 2003 में नागपुर शहर में लगी थी, लगभग दो साल तक उस कंपनी में काम करने के बाद उन्होंने नई कंपनी ज्वाइंन कर ली। साल 2005 में सचिन काले को पुणे की एक कंपनी में सालाना 12 लाख रुपए का पैकेज मिल रहा था, जो उस दौर के हिसाब से काफ़ी ज़्यादा था।

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कुछ सालों तक पुणे में नौकरी करने के बाद सचिन काले को दिल्ली की एक कंपनी से ऑफर आया, जहाँ उन्हें सालाना 24 लाख रुपए का पैकेज मिल रहा था। सचिन के पास उस ऑफर को ठुकराने की कोई वज़ह नहीं थी, लिहाजा वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए।

दिल्ली में नौकरी करते हुए सचिन काले के पास सुविधाजनक ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी घर और बड़ी गाड़ी सब कुछ मौजूद था, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें यह सभी चीजें उबाऊ लगने लगी। सचिन काले 9 से 5 की नौकरी और रोजमर्रा के कामों से निराश हो चुके थे, क्योंकि वह अपनी ज़िन्दगी में कुछ अलग और नया करना चाहते थे।

नौकरी छोड़कर शुरू की खेती

सचिन काले ने साल 2014 में नौकरी छोड़कर खेती करने का फ़ैसला किया, लेकिन सचिन के इस फैसले से उनके पिता जी बेहद निराश हुए। दरअसल सचिन के पिता जी चाहते थे कि वह नौकरी छोड़कर उनके बिजनेस में हाथ बंटाए, लेकिन सचिन में उनकी सोच के बिल्कुल उल्ट खेती करने का निर्णय किया था।

हालांकि सचिन के फैसले और खेती करने की लगन के आगे आखिरकार उनके पिता जी को भी हार माननी पड़ी, जिसके बाद सचिन ने अपने पैतृक गाँव मेड़पार में खेती करनी शुरू कर दी.

सचिन ने खेती शुरू करने से पहले विशेषज्ञों से राय ली और खेती की बारिकियों को सीखा, इसके साथ ही उन्होंने फल और सब्जियाँ उगाने के लिए कई प्रकार के शोध कार्य भी किए। सचिन ने पारंपरिक खेती के बजाय कॉर्पोरेट खेती करने पर ज़्यादा ज़ोर दिया, क्योंकि उससे मुनाफा ज़्यादा होता है।

उन्होंने इस काम के लिए ख़ुद की इनोवेटिव एग्री लाइफ सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की नींव रखी, जिसके जरिए वह किसानों के लिए फंड की व्यवस्था करते हैं। इसके साथ ही सचिन की यह कंपनी खेती के ख़र्च और कमाई का भी पूरा हिसाब रखती है, जिससे घाटा और मुनाफा तय करने में आसानी होती है।

किसानों को दिया खेती का नया मॉडल

इतने सालों तक प्राइवेट सेक्टर में काम करते हुए सचिन काले कम पैसों में ज़्यादा मुनाफा कमाने की कला को सीख चुके थे, लिहाजा उन्होंने किसान भाईयों को खेती का एक नया मॉडल सिखाया। इस मॉडल के जरिए किसान मौसम के हिसाब से अलग-अलग फल, सब्जियों और फ़सल की खेती करने लगे, जिससे उन्हें काफ़ी ज़्यादा मुनाफा होते लगे।

सचिन के इस खेती मॉडल से प्रभावित होकर कुछ ही समय में 70 किसान उनकी कंपनी के साथ जुड़ गए, जिसकी बदौलत महज़ 2 सालों में सचिन की कंपनी का टर्न-ओवर 2 करोड़ रुपए तक पहुँच गया। सचिन काले धान के अलावा दाल, मौसमी फलों और सब्जियों की भी ऑर्गेनिक खेती करते हैं।

वर्तमान में सचिन काले सिर्फ़ अपने पैतृक गाँव में ही नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों में भी युवाओं को खेती के गुर सिखाने का काम करते हैं। बिलासपुर में हर छोटे बड़े खेती से जुड़े कार्यक्रम में सचिन काले को आमंत्रित किया जाता है, ताकि युवाओं को उनसे खेती करने का प्रोत्साहन मिले।

दादी जी से मिली जीवन में कुछ अलग करने की सीख

सचिन काले खेती के क्षेत्र में कामयाबी पाने का श्रेय अपने दादी जी को देते हैं, क्योंकि उन्होंने ही सचिन को जीवन में कुछ अलग करने की सलाह दी थी। दरअसल सचिन जब भी शहर से कुछ दिनों के गाँव जाते थे, तो उनके दादी जी समाज कल्याण की बातें किया करते थे।

सचिन के दादा जी का कहना था कि 9 से 5 की नौकरी में कुछ नहीं रखा है, क्योंकि इससे समाज की बेहतरी के लिए कोई काम नहीं किया जा सकता। वह सचिन को अपने समय का सही उपयोग करने और समाज कल्याण के लिए काम करने की सलाह देते थे।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...