अब आईडीबीआई बैंक भी सरकारी नहीं रहेगा। केंद्र की मोदी सरकार ने इसे बेचने का फैसला कर लिया है। ये फैसला ऐसे वक्त में किया गया है जब पांच साल के बाद पहली बार ये बैंक मुनाफे में आई है।
आईडीबीआई बैंक में केंद्र सरकार और एलआईसी की कुल हिस्सेदारी 94 प्रतिशत से भी ज्यादा है।
जब से आईडीबीआई बैंक को बेचे जाने की खबर आई है तब से तरह तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है।
लोगों का कहना है कि पहले तो सरकार किसी भी सार्वजनिक संस्थान को बेचे जाने के मुद्दे पर उसके घाटे में होने का तर्क देती थी लेकिन ऐसे वक्त में जब इस बैंक ने पांच सालों के बाद मुनाफा दिया, फिर इसे बेचने की क्या जरुरत आ पड़ी।
बिहार की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने आईडीबीआई बैंक को बेचे जाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करते हुए ट्वीटर पर लिखा है कि “आईडीबीआई बैंक ने 5 साल बाद इस बार मुनाफा दिया तो मोदी सरकार से बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुआ.
कोरोना संकट के बीच मरते हुए देशवासियों को बचाने की बजाय मोदी जी ने बैंक बेचने का फैसला कर रहे हैं. राजद ने कहा कि सरकार का मकसद देश से कोरोना मिटाना नहीं बल्कि सरकारी संपत्ति को बेचना है”
केंद्र की मोदी सरकार के इस फैसले का बैंक कर्मचारी संगठनों ने विरोध किया है। अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने साफ तौर सरकार के इस फैसले को गलत बताया है।
संघ का कहना है कि सरकार को हर हाल में बैंक की कुल पूंजी शेयर का 51 प्रतिशत हिस्सा सरकार को अपने पास रखना चाहिए।
Input :- bolta hindustan