80 साल की उम्र में उज्जैन की शशिकला ने संस्कृत में पीएचडी की उपाधि हासिल कर साबित कर दिया कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती. शिक्षा विभाग से लेक्चरर की पोस्ट से रिटायर होने के बाद शशिकला ने 2009-2011 में ज्योतिष विज्ञान से एमए किया और आगे तय किया कि वो पीएचडी करेगी |

इसके लिए उन्होंने संस्कृत में वराहमिहिर के ज्योतिष ग्रंथ ‘वृहत संहिता’ पर अध्ययन शुरू किया और अंतत: सफल रहीं. और उसने यह साबित कर दी कि पढ़ने की कोई उम्र सीमा नहीं होती लोग जब चाहे तब अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ा सकते हैं लेकिन यहां तो लोग सोचते हैं कि बिना उम्र के ही पढ़ाई होती है पढ़ने वाले के लिए कोई उम्र मायने नहीं रखता है |

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शशिकला ने महर्षि पाणिनी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी के मार्गदर्शन में ‘वृहत संहिता के दर्पण में सामाजिक जीवन के बिंब’ विषय पर अपनी पीएचडी पूरी की. राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने उन्हें अपने हाथों से डिग्री देकर सम्मानित किया और उनके हौसले की सराहना की. शशि कला को राजपाल के द्वारा सम्मानित किया गया |

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...