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वर्चस्व की लड़ाई हो या राजनेताओं की कुटिल साजिश या क्षत्रपों की हिंसक कायरता! इन तीनों का शिकार हमेशा से निर्दोष लोग ही होते आए हैं! ये लोग वो होते हैं जिनकी मजबूरी होती हैं इनका शिकार बनना!

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इस नरसंहार के पीछे छिपे तथ्यों को समझना बीरबल की खिचड़ी बनाने से भी आसान है!

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ये नरसंहार दरअसल बेनीपट्टी पुलिस प्रशासन की अकर्मण्यता का नतीजा है! सत्ताधारी राजनेताओं के प्रभाव में एक छुटभैय्ये बदमाश को दुर्दात सनकी अपराधी बनने की कहानी भर है !

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इस कहानी का दुखद पहलु ये हृदय विदारक तस्वीर और इन बच्चों का बेवजह अपने पिता का खोना है!

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मुख्य सवाल

नंबर 1. घायलों को उचित इलाज क्यों नहीं मिला?
नंबर 2. गैर जमानती वारंटी होते हुए भी मुख्य हत्यारा खुलेआम कैसे घूम रहा था?

मेरा स्पष्ट मानना है कि जिन सत्ताधारी राजनेताओं ने उस छुटभैय्ये बदमाश को संरक्षण दिया वो भी ये नहीं जानते थे कि यह अपने सनक में इतना बड़ा नरसंहार करेगा!

खैर ये सनकी दुर्दांत अपराधी अब अपने राजनैतिक आका के लिए भस्मासुर बन चुका हैं! पुलिस प्रशासन की मजबूरी बन चुकी हैं इसका एनकाउंटर करना!

सभी बौद्धिक महापुरूषों से आग्रह हैं कि इस नरसंहार को जातिगत रंजिश का रूप ना दें! यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो ऐसे तस्वीर बारंबार सबके नजरों के सामने आते रहेंगे!

बेनीपट्टी के नौजवान ही नहीं सभी नौजवानों से आग्रह हैं कि खुद को राजनैतिक दलदल में फंसने से बचाऐं! ये राजनेता वर्ग सिर्फ और सिर्फ उनके सकारात्मक ऊर्जा को अपना हित साधने के लिए उन्हें गुमराह करते हैं दूसरों में दोष दिखाकर!

हत्यारों की गिरफ्तारी हो! फास्ट ट्रैक कोर्ट में स्पीडी ट्रायल हो! मौत की सजा मिले! ताकि न्यायसंगत न्याय हो!

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...