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माता पिता अपने बच्चों की परवरिश के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. बच्चे अपने जीवन में सफल हो जाएं इसके लिए माता पिता अपने जीवन की सारी पूंजी दांव पर लगा देते हैं. आज हम आपको जिस कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं उसमें एक विधवा महिला ने अपने बच्चों की परवरिश के लिए सफाईकर्मी के तौर पर काम किया.

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जो पैसा उसको मिलता वो बच्चों की परवरिश और पढ़ाई में खर्च कर देती थी. इस महिला का नाम सुमित्रा देवी है. बच्चों ने भी मां की मेहनत और परिवार के आर्थिक हालातों को अच्छी तरह समझ लिया था. बच्चों ने भी खूब मेहनत से पढ़ाई की. आज उस महिला का एक बेटा जिलाधिकारी तो दूसरा एमबीबीएस डॉक्टर और तीसरा बेटा इंजीनियर बनकर परिवार का नाम रौशन कर रहे हैं. बच्चों की सफलता को देखकर मां भी गर्व महसूस कर रही है.

झारखंड के छोटे से गांव रजरप्पा की रहने वाली हैं. सुमित्रा की कम उम्र में ही शादी हो गई थी. परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा मजबूत नहीं थी. वहीं, काफी साल पहले पति के निधन के कारण परिवार का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया था.

सुमित्रा भले ही पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन अपने बच्चों को वो पढ़ाकर बड़ा अधिकारी बनाना चाहती थीं. बच्चों की परवरिश और अच्छी पढ़ाई हो सके इसलिए उन्होंने नौकरी की तलाश करना शुरू कर दिया. अनपढ़ होने के कारण उन्हें नौकरी ढूंढने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा.

एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि पढ़ी लिखी ना होने के कारण उन्हें कोई नौकरी पर रखने के लिए तैयारी नहीं हो रहा था. हालांकि काफी मेहनत के बाद उन्हें नगर पालिका के तहत कस्बे में सफाई का काम मिल गया.

शुरुआत में उन्होंने काफी सालों तक ठेकेदार के आधीन रहकर नौकरी की. लेकिन बाद में उन्हें नगरपालिका की तरफ से रख लिया गया. सफाईकर्मी के तौर पर उनकी नौकरी पक्की हो गई. वो बताती हैं कि वो जल्दी सुबह उठकर बच्चों को खाना तैयार कर देती थी.

एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो डॉक्टर बन गए. वहीं सुमित्रा देवी के सबसे छोटे बेटे महेंद्र कुमार ने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी की. यूपीएससी परीक्षा में उन्होंने अच्छी रैंक हासिल की. अच्छी रैंक होने के कारण उनका आईएएस के पद पर सिलेक्सन हो गया. फिलहाल वो बिहार के सुपौल जिले में जिलाधिकारी के पद पर अपने सेवा दे रहे हैं.

सुमित्रा देवी ने बच्चों को सफल बनाकर सफाईकर्मी की नौकरी छोड़ दी है. नगरपालिका द्वारा उनके सेवानिवृति होने पर उन्हें सम्मानित किया. जिस दौरान उन्हें सम्मानित किया जा रहा था उस समय उनके तीनों बेटे मां की खुशी में शामिल हुए. सुमित्रा के सहकर्मी उनकी सफलता देखकर हैरान रह गए. विधवा होने और सफाईकर्मी होने के बावजूद भी अपने बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाना कोई छोटी बात नहीं थी.

इस दौरान उनके सबसे छोटे आईएएस बेटे महेंद्र ने बताया कि उनकी मां ने बहुत मेहनत कर तीनों बच्चों को काबिल बनाया है. ये मां कि मेहनत और आशीर्वाद ही है कि हम अपने पैरों पर खड़े हो सकें. वहीं, कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता है. मां की मेहनत हमारे लिए प्रेरणा रहेगी.

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...