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IPL 2019 की एमएस धोनी की एक तस्वीर यादों में हैं. धोनी मैदान पर गुस्से में खड़े हैं. उनके साथ सुरेश रैना हैं और गुस्से का शिकार बन रहे हैं CSK के तेज़ गेंदबाज़ दीपक चाहर. वही दीपक चाहर जिन्होंने श्रीलंका में जाकर इतिहास रच दिया है. भारत और श्रीलंका के बीच खेले गए दूसरे वनडे में दीपक चाहर ने भारत को हार के मुंह से जीत दिलाई और श्रीलंका के खिलाफ तीन मैचों की सीरीज़ में भी जीत दिला दी.

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दीपक चाहर ने नंबर आठ पर बैटिंग करते हुए 82 गेंदों में 69 रनों की नॉट-आउट पारी खेली और मैच पलट दिया. टीम इंडिया की इस शानदार जीत के बाद दीपक चाहर ने क्या कुछ कहा पहले ये जानिए.

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राहुल द्रविड़ का विश्वास. ये बड़ा शब्द है. लेकिन विश्वास एक दिन में नहीं बनता. ये विश्वास बना है चाहर की मेहनत से. क्योंकि भारतीय टीम के स्टार ऑल-राउंडर दीपक चाहर का इंडियन टीम तक का सफर इतना आसान नहीं था.

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बात 2008 की है. राजस्थान क्रिकेट असोसिएशन ट्रायल ले रहा था. प्रदेश के कायदे वाले क्रिकेटरों को छांटने के लिए. एक से एक धाकड़ लड़के आए थे. दे बॉलिंग, दे बैटिंग करे पड़े थे. इन्हीं में एक दीपक चाहर भी आजमाइश कर रहे थे. उम्र थी 16 साल. ट्रायल दिया. कई गेंदें डालीं पर वहां खड़े मास्टर साहब को मजा नहीं आ रहा था.

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ये मास्टर साहब थे ग्रेग चैपल. भारतीय टीम का खून चूसने वाले ग्रेग चैपल. महाशय उस वक्त राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन अकेडमी के डायरेक्टर थे. पर चैपल साहब की खून चुसनी यहां भी लगी थी. शिकार बना ये 16 साल का खिलाड़ी. दीपक को रिजेक्ट कर दिया गया. टॉप 50 में भी नहीं चुना गया. दीपक को लगा कि वो अच्छा खेल रहा है. और लड़कों से ज्यादा अच्छी कद-काठी है. तो उसने सोचा चैपल से पूछ तो लिया ही जाए कि मुझमें क्या कमी है. जवाब मिला –

इससे कड़वी बात दीपक ने पहले कभी नहीं सुनी थी. आंखों में आंसू थे पर उन्होंने खुद को संभाला. खून का घूंट पीकर वहां से लौट गए. लौटे इसलिए ताकि वापस आ सके. जवाब दे सके. और जवाब दिया. दो साल बाद. सिर्फ चैपल को ही नहीं. पूरी दुनिया को. हर उस आदमी को जिसने उसे नकारा था. कैसे, जान लीजिए –

दीपक के क्रिकेटर बनने की कहानी का सबसे दिलचस्प पहलू उनको चैपल का रिजेक्ट करना नहीं है. दिलचस्प है उनके और उनके पिता लोकेंद्र चाहर के बीच का रिश्ता. उनके पिता कि जिद कि अपने बेटे को क्रिकेटर बनाकर ही दम लेनी है. दीपक का जन्म 7 अगस्त 1992 को आगरा में हुआ था. जब दीपक 10 साल के थे, तब से ही लोकेंद्र ने उनको जयपुर की जिला क्रिकेट अकेडमी में एडमिशन दिलवा दिया था.

बाद में लोकेंद्र को लगा कि उनके बेटे के कैरियर और उनके सपने के बीच में एयरफोर्स की उनकी नौकरी आ रही है तो वो उसे छोड़ बैठे. अब उनका पूरा ध्यान बेटे के कैरियर पर था. वो रोज दीपक को बाइक से खुद ट्रेनिंग करवाने ले जाते और साथ वापस आते. दीपक खुद भी कहते हैं कि उनका सबसे बड़ा कोच उनके पिता ही हैं.

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...