Rajendra bharud IAS : सफलता किसी साधन की मोहताज नहीं होती। सफलता मिलती है जब सपने को साकार करने का जज्बा हो, हौसला हो और कठिन से कठिन वक्त में भी मेहनत करने का जुनून हो। आईएएस राजेंद्र भरूद की कहानी उन युवाओं को प्रेरणा दे सकती है जो सफलता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार रहते हैं.

राजेंद्र भरूद के जीवन में मुश्किलों का दौर उस समय शुरू हो गया जब वो अपनी मां की कोख में थे. जब वो मां के गर्भ में थे तभी उनके पिता का निधन हो गया. घर में गरीबी इतनी ज्यादा थी कि मां को शराब बेचकर परिवार का पालन पोषण करना पड़ता था. लेकिन उससे भी पूरा नहीं पड़ता था. कभी कभी नौबत ये आ जाती थी कि रोते बिलखते भूखे बच्चों को शांत कराने के लिए मां 1-2 बूंद शराब पिला देती थी.

आर्थिक तंगी से गुजर रहे परिवार के आसपास का माहौल भी ज्यादा अच्छा नहीं था लेकिन इस सब के बीच उन्होंने अपने सपनों को खोने ना दिया. कड़ी मेहनत, जुनून और लगन से उन्होंने आईएएस अधिकारी तक का सफर तय किया. आइए विस्तार से जानते हैं झोपड़ी में रहकर पढ़ाई करने से आईएएस अधिकारी बनने के सफर के बारे में…

राजेंद्र भारूद ने प्राइमरी की पढ़ाई जिला परिषद स्कूल से की। वो बताते हैं कि जब वो पांचवी क्लास में थे तो उनके शिक्षकों ने उनमें छिपी प्रतिभा को पहचाना और उनकी मां से उन्हें किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाने को कहा। राजेंद्र की मां ने भी शिक्षकों की बात मानते हुए गांव से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जवाहर नवोदय विद्यालय में राजेंद्र को भेजने का फैसला किया। मां से दूर रहने पर राजेंद्र भी रो रहे थे और उनकी माँ भी रो रही थी लेकिन राजेंद्र के उज्जवल भविष्य के लिए उनकी मां ने उन्हें जवाहर नवोदय विद्यालय भेज ही दिया।

डॉ. राजेन्द्र ने एक साक्षात्कार में बताया था कि वो अपनी छोटी सी झोपड़ी के एक चबूतरे पर बैठकर पढ़ाई किया करते थे। मां के पास जब लोग शराब खरीदने आते थे तो जो राजेंद्र से स्नैक्स व सोडा आदि मंगवाते थे उसके बदले वो इन्हें कुछ पैसे दे देते थे। कई सालों तक इन पैसों की मदद से राजेंद्र अपनी किताबों आदि का खर्च चलाते रहे. इतनी मुश्किल सहने के बाद भी उन्होंने पढ़ाई करना नहीं छोड़ा.

राजेन्द्र ने अपने जीवन के संघर्ष पर एक किताब भी लिखी है. उनकी किताब का नाम सपनों की उड़ान है. अपने संघर्ष के बारे में लिखते हुए उन्होंने बताया है कि मां शराब बेचकर मुझे पढ़ाती थी और मैं उन्हीं के बगल में बैठकर पढ़ाई करता था. इस दौरान जो लोग मुझे देखते थे वो कहते थे कि शराब बेचने वाले का बेटा भी बड़ा होकर शराब ही बेचेगा. मां और बेटे ने ये तय कर लिया था कि बड़ा होकर बड़ा अधिकारी बनकर ही दिखाना है. इसलिए उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई के बाद यूपीएससी परीक्षा की पढ़ाई करना शुरू कर दिया.

डॉक्टर बनने के बाद राजेंद्र ने मेहनत से यूपीएससी की तैयारी करना शुरू कर दिया. पहले प्रयास में राजेंद्र को आईपीएस की नौकरी में सफलता हासिल हो गई . लेकिन उनका सपना आईएएस बनने का था। उन्होंने दूसरे प्रयास में अपने इस सपने को हकीकत में बदल दिया…

साल 2013 बैच में वो आईएएस अधिकारी बनने में सफल हो गए। जब उन्होंने अपनी मां से कहा तो उनकी मां को ये नहीं पता था कि आईएएस क्या होता है लेकिन उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक रहे थे। फिलहाल वो महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले में बतौर जिलाधिकारी कार्यरत हैं। राजेंद्र की कहानी हमें यह सीख देती है की सफलता के लिए संसाधन की आवश्यकता नहीं है आवश्यकता है तो जुनून की जज्बे की और मेहनत करने की।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...