अगर आपकी उम्र 30 साल से अधिक है तब आप जानते होंगे की आज से 20 साल 30 साल पहले बिहार उत्तरप्रदेश में कैसे शादी विवाह होता था. अगर नहीं तो चलिए आपको बता देते है जैसे आज के समय में मैरेज हॉल रेस्टुरेंट और होटल है वैसे आज से कुछ सालों पहले नहीं हुआ करता था.
और नहीं इतना बाइक और कार होती थी बल्कि पहले से समय में लोग पैदल ही बारात जाते थे दुरी के हिसाब से एडजस्ट करके दिन में ही बारात जाते थे और दूल्हा का ड्रेस होता था पिला धोती और कुर्ता जैसे आज कोर्ट पैन्ट सब पहनते है उसी तरह पहले धोती कुर्ता चलता था. और बारात जाने का साधन बैल गाड़ी होती थी उस पर भी सिमित लोग ही बैठते थे दूल्हा और साथ में उनके पिता एवं कुछ मुख्य लोग चाचा,फूफा मौसा इत्यादि.
2 दिन में विवाह होता था सम्पन्न
ये तो हुई बारात की बात वहां जाने के बाद पहले के समय में लोग 2 दिन ठहरते थे. जैसे आज 2 से तीन घंटे में विवाह सम्पन्न हो जाता है वैसे पहले नहीं होता था बल्कि कुछ टाइम के बाद लड़की घर आती थी और लड़की शादी के कमसे कम 6 महीने बाद गौऊना रस्म पूरा करने के बाद अपने ससुराल आती थी.
पालकी पर विदा होती थी दुल्हन
और दुल्हन की आने की प्रमुख सवारी पालकी होता था जैसे एक धारावाही फिल्म “नदिया के पार” में आपने देखा होगा की दुल्हन वर्गाकार नुमा लकड़ी के बने बॉक्स में बैठ जाती है और चारों ओर से व्यक्ति उसे अपने कंधो पर ले जाते थे लेकिन आज कुछ ही वर्षो में जमाना बहुत बदल गया है.
30 वर्ष में बहुत बदल गया जमाना
आज समय इतना बदल गया जिसकी कल्पना आप कर भी नहीं सकते है इतना बाइक, कार, घर, होटल बन गए लोग स्टैण्डर्ड हो गए. लेकिन आज के समय में भी एक ऐसा दृश्य देखने को मिला है जहाँ शादी होंने के बाद दूल्हा-दुल्हन पैदल पुल पार कर रहे है और उसके पीछे-पीछे ठेला पर लादे उसका समान भी जा रहा है.
दरअसल यह मामला बिहार के भागलपुर स्थित नाथनगर प्रखंड के शंकपुर इलाके की है जहाँ सत्तो महतो की बेटी की शादी हाल ही के कुछ दिनों पहले हुई है जहाँ से एक विडियो और कुछ तस्वीरे वायरल हो रही है जिसमें उस गाँव के विकाश का साफ़-साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता है की वह गाँव आज से 30 साल पीछे चल रही है.
दरअसल सत्तो महतो की बेटी की शादी तो हो गई लेकिन विदाई के लिए उनके पास रोड नहीं था तो दूल्हा और दुल्हन को पैदल चचरी से बने पुल पर ले जाया गया. और उसके पीछे-पीछे दूल्हा के परिजन और पीछे से ठेला पर लदे समान यह दृश्य देखकर लोगों को आज से 30 साल पहले की समय याद आ गई कितनी शर्म की बात है ज़माना कहाँ से कहाँ चल गया और बिहार के भागलपुर के इस गाँव में आज तक पिछले 30 सालों से विकाश नहीं पंहुची है.
काफी मशक्त के बाद करीब डेढ़ किलोमीटर का लम्बा सफर तय करने के बाद लोगों ने पुल को पार किया. दरअसल बारात जिस गाड़ी से आई थी वो गाड़ी गाँव से करीब 2 किलोमीटर पहले माहेदेव चौक पर ही लगा दी गई थी. अब सवाल यह खड़ा होता है की इस गाँव के लोगों से साथ कहीं के लोग शादी करने से पीछे हटते है. क्यूंकि इस गाँव में प्रवेश करने के लिए सड़क नहीं है.
30 वर्षो से इस गाँव में नहीं पंहुचा है “विकाश”
गाँव वालों का कहना है की यह चचरी का पुल पार करना हमारी मजबूरी है. गाँव में कोई भी व्यक्ति बीमार हो या कोई महिला डिलीवरी की हालात में हो डेढ़ किलोमीटर का यह लम्बा सफ़र हमें तय करना ही पड़ता है अब सवाल उठता है की इस गाँव पर सरकार की नज़र अभी तक क्यूँ नहीं पड़ी है. ग्रामीणों का कहना है की पीछे कई सालों से पक्का की पुल की मांग की जा रही है लेकिन इसका असर कुछ नहीं हुआ है.