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एक दिन वह अपनी मां के साथ बाजार जा रही थी. रास्ते में उसने देखा कि एक पेड़ पर एक आम लटका हुआ है. माँ ने लाख समझाया लेकिन वह अडिग रही. मां ने समझाया कि आम पेड़ की ऊंचाई पर है, इसलिए पेड़ पर मत चढ़ो. फिर उसने सड़क के किनारे पड़े एक पत्थर को उठाया और आम पर निशाना साधा. उस दिन, लड़की की माँ ने शूटिंग के लिए उसकी प्रतिभा को पहचाना. उस दिन से लगातार उन पर निशाना साधने वाली लड़की आज दुनिया के बेहतरीन तीरंदाजों में से एक है. आज पूरा देश उन्हें इस नजरिए से देख रहा है कि वह तीरंदाजी में नाम कमाएंगी.

तीरंदाजी में विश्व चैंपियन और राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता दीपिका कुमारी ने अपनी प्रतिभा से देश-विदेश में कई झंडे गाड़े हैं. पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कारों से नवाजी जा चुकीं दीपिका के लिए सफर आसान नहीं रहा है. 13 जून 1994 को झारखंड की राजधानी रांची से करीब 15 किमी. सुदूर रातू चेट्टी गांव में जन्मी दीपिका के पिता शिवनारायण महतो ऑटो रिक्शा चलाते हैं और उनकी मां गीता देवी नर्स का काम करती हैं.

गाँव की एक झोपड़ी में पली-बढ़ी दीपिका अक्सर अपने इस शौक के लिए अपने पिता से अपमान सुनती थीं. उसके पिता चाहते थे कि वह मेहनत से पढ़े और अधिकारी बने. दीपिका उनकी धुनों का अध्ययन करती थीं और बांस के बने धनुष से वे लगातार धनुर्विद्या का अभ्यास करती थीं. इसी मिठास और जोश के कारण आज देश-विदेश में उनका नाम गूंज रहा है.

दीपिका के जीवन से जुड़ी कई रोचक और प्रेरक घटनाएं हैं. एक बार उसने अपने पिता से उसे एक तीर और एक धनुष खरीदने के लिए कहा, तो पहले तो उसके पिता ने मना कर दिया, और कहा कि वह बेकार पर ध्यान केंद्रित न करे और पढ़-लिखकर कुछ बड़ा हो जाए.

लेकिन फिर उन्होंने अपनी बेटी के लिए तीरंदाजी में इस्तेमाल होने वाले तीर और धनुष खरीदने के लिए बाजार का रुख किया. अपनी लाखों की कीमत सुनकर उसने हार मान ली और अपनी बेटी की लाचारी व्यक्त करने के लिए वापस आ गई. अपने पिता की गरीबी से प्रेरित होकर दीपिका ने बांस के तीर और धनुष का अभ्यास करना जारी रखा.

दीपिका की मां की बात सुनकर वह अपनी धनुर्विद्या को लेकर इतनी गंभीर थीं कि जब भी मौका मिलता वह पेड़ पर लटके फल को देखती और अभ्यास में कौशल लाती. यह चलन आम के मौसम में और बढ़ जाता था. जिसे भी दीपिका के दोस्तों ने उसे टारगेट करने के लिए कहा, वह उसे मार देती. कुछ साल पहले, जब लोहरदगा में एक तीरंदाजी प्रतियोगिता थी, तो दीपिका ने उसमें जाने का फैसला किया था.

हार के बाद पिता को लोहरदगा जाने के लिए 10 रुपये देने पड़े. प्रतियोगिता में दीपिका ने भाग लिया और प्रथम पुरस्कार जीता. उसके बाद से उनका पुरस्कार जीतने का सफर बदस्तूर जारी है.

दीपिका ने यह सफर 10 रुपये से शुरू किया था और देश-विदेश में कई सफलताएं हासिल कीं. वह मेरिडा, मैक्सिको में 2006 विश्व चैंपियनशिप में कंपाउंड एकल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला बनीं. वह 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में धूमकेतु की तरह चमकीं और उन्होंने न केवल व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता बल्कि महिला रिकर्व टीम के लिए स्वर्ण पदक भी जीता. अर्जुन पुरस्कार विजेता दीपिका ने 2011 से 2013 तक लगातार तीन विश्व कप रजत पदक जीते.

2016 में, उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. दीपिका की कामयाबी इस बात की गवाह है कि सफलता की राह आसान नहीं होती, लेकिन मेहनत करने वाला मुश्किलों को झुका देता है.

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...