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करीमुल हक उर्फ ‘बाइक एंबुलेंस दादा’. पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के रहने वाले करीमुल हक किसी मसीहा से कम नहीं हैं. वह पिछले एक दशक से अपने आसपास के जिलों में रहने वाले सैकड़ों लोगों की मदद कर चुके हैं. उन्होंने अपनी बाइक में ही एंबुलेंस टाइप की सुविधा बना रखी है | और उससे लोगों को काफी सुविधा मिलती है गरीब मजदूर को पैसा नहीं होने के कारण वह आपने पीड़ित व्यक्ति को एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल पैसा नहीं होने के कारण एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल नहीं ले जाते हैं इसीलिए इस व्यक्ति ने एक मसीहा जैसा काम किया है |

और अपनी बाइक में ही एंबुलेंस जैसे सेवा देकर लोगों को फ्री मदद कर रहा है | उनका दावा है कि उन्होंने लगभग 4 हजार लोगों को फ्री में बाइक एंबुलेंस की सेवा दी है. उनके झोपड़ीनुमा घर में ही फ्री में एक क्लिनिक भी चलता है. वहां लोगों की स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ दवाई भी मिल जाती है | करीमुल ने जरूरतमंदों को घर बनवाने में उनके बच्चों को पढ़ाने में भी मदद की है. वह अपने घर के पास ही अपनी पुश्तैनी जमीन पर तीन मंजिला अस्पताल भी बनवा रहे हैं. और सिर्फ एंबुलेंस से ही नहीं अब वह अस्पताल भी बनवा रहे हैं जिसमें लोगों को फ्री में इलाज होगा और सब लोग खुश भी होंगे इस सुविधा को पाकर.

वह कहते हैं कि उनकी मां को दिल का दौरा पड़ गया.  वह बहुत कोशिश किए, लेकिन कोई संशाधन नहीं मिला. समय पर इलाज नहीं मिला और मां की मौत हो गई.इसके बाद से उन्होंने प्रण लिया कि वह किसी और को इस तरह मरने नहीं देंगे. जब इनकी मां को दिल का दौरा पड़ा कोई सुविधा नहीं होने के कारण इनकी मां की मृत्यु हो गई तब उन्होंने संकल्प लिया जब किसी की मृत्यु संसाधन नहीं होने के कारण नहीं होगी इसलिए अपना यहां सहयोग सारे पीड़ित व्यक्ति को अपने क्षेत्र में करते हैं |

वह इसके बाद स्वास्थ्य सेवा में जुट गए. शुरू-शुरू में वह रिक्शा-ठेला जो भी मिला उससे लोगों की मदद करते थे. एक बीच उनका एक साथी गश्त खाकर गिरा तो वह किसी की बाइक लेकर उसे अस्पताल पहुंचा दिए. बस यहीं से उन्हें बाइक एंबुलेंस का आइडिया आया. करीमुल ने एक पुरानी राजदूत बाइक की व्यवस्था की और काम करने लगे. हालांकि, एक एक्सीडेंट में वह घायल हो गए और बाइक भी बनन की स्थिति में नहीं रह गई. इसके बाद उन्होंने लोगों की मदद से एक दूसरी बाइक साल 2009 में ली. 

इससे उन्होंने अपनी फ्री की एंबुलेंस सेवा को और बेहतर कर दिया. इतना ही नहीं इनको वहां के स्थानीय लोगों का भी बखूबी बहुत साथ मिला और अपने राजदूत बाइक से एक अच्छे कार लेने में भी इनको लोग ने मदद किया. शुरू में कई लोग उन्हें ताने मारते थे. उन्हें परेशान करते थे. लेकिन,च करिमुल हार नहीं माने. लगातार काम करते रहते. धीरे-धीरे लोगों को उनकी अहमियत समझ में आई. साल 2017 में उन्हें केंद्र सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया.

शुरू शुरू में लोग इन्हें ताने मार के खाते से पागल हो गया है मां के मौत के सदमे में है लेकिन जब लोग इन्हें गहराई से देखा तो अब इनकी भावना को कद्र करते हैं और इनको साथ ही देते हैं चाहे पैसे से हो और उन्हें मोटिवेट भी करते हैं इससे इनके भी मनोबल पर ही रहती है | लेकिन इन्होंने लोगों के ताना पर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में मन बनाए रखा और एक दिन ऐसे मुकाम तक पहुंच गया कि लोग इसे भगवान के नाम से जानते हैं और भगवान मानते हैं |

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...