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ये पंक्तियाँ हौंसलों की ताकत को बखूबी बयाँ करती हैं। ऐसे कई लोग होते हैं, जिन्हें ज़िन्दगी में अथाह दुख और परेशानियों का सामना करना पड़ता है और जब यह पीड़ा असहनीय हो जाती है तो फिर ऐसे मुश्किल वक़्त में उनके पास दो रास्ते होते हैं या तो वे अपनी ज़िन्दगी से हार मान कर अपनी जिंदगी खत्म कर बैठते हैं.

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या फिर अपने आप को मज़बूत बनाकर हिम्मत से सारी परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ जाते  ऐसे ही कुछ बारिशा सी लड़की के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जो कि अपनी विषम परिस्थिति में भी मुसीबतों से डटकर सामना किया और हार मानने का काम नहीं किया तो फिर आज 700 करोड़ की मालिक है और 8 se भी ज्यादा कंपनियां चलाती है.

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आज हम आपको एक ऐसी ही लड़की के बारे में बताने जा रहे है जिसके जीवन संघर्ष बारे में सुनकर आपकी आँखों में आंसु आ जायेंगे। ज़िन्दगी ने इस लड़की को लाखों मुश्किलें दी।

शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित इस लड़की ने जीवन की मुश्किलों से हार मानकर एक दिन इस लड़की ने अपनी जिंदगी खत्म करने की भी कोशिश की, लेकिन कहते है ना कि अगर इरादे मज़बूत हों तो क़िस्मत पलटते भी देर नहीं लगती।

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आज अपनी मेहनत और हिम्मत के बल पर इस लड़की ने 700 करोड़ का साम्राज्य खड़ा कर लिया है। चलिए जानते हैं कैसे इन्होने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की आइए इनकी जीवन की घटना से रूबरू होते हैं.

आपको बता दें की, जब उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की राह में पहला क़दम रखा था तब उन्होंने शुरुआत 2 रुपए प्रतिदिन की कमाई ही की थी और आज वह 2 रुपए कमाने वाली कल्पना जी आज करोड़ों का टर्नओवर करती हैं। इतना ही नहीं इन्हें समाजसेवा के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार, राजीव गांधी पुरस्कार जैसे कई बड़े-बड़े पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है। सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उन्हें सम्मानित किया गया।

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जिस लड़की की बात हम कर रहे हैं, उनका नाम कल्पना सरोज (Kalpna Saroj) है। जैसा कि हमने बताया आज उन्होंने कामयाबी का वह तख्तो ताज हासिल किया है, जो सारी ज़िन्दगी बीत जाने पर भी नहीं मिलता। कल्पना आज 700 करोड़ की कंपनी की ओनर हैं, इनकी कंपनी का नाम ‘Kamani Tubes‘ है और साथ ही यह अन्य बहुत-सी कंपनियों जैसे कल्पना एसोसिएट्स, कल्पना बिल्डर्स, कल्पना स्टील्स आदि दर्जनों कंपनियों की मालकिन हैं। परन्तु उनकी इस सफलता के पीछे कड़े संघर्ष की कहानी छिपी है।

महाराष्ट्र के विदर्भ में जन्मीं कल्पना जी के जन्मस्थान पर पानी की कमी के कारण सूखा रह चुका था। उनके घर की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब थी इसलिए, ग़रीबी की वज़ह से कल्पना जी को गोबर के उपले बनाकर बेचने पड़ते थे।

इनके परिवार वालों ने 12 साल की उम्र में एक 10 साल बड़ी उम्र के लड़के से इनकी शादी कर दी। जिसके बाद कल्पना जी विदर्भ से अपने ससुराल मुंबई आ पहुँची। ससुराल में भी कहाँ सुख था, सारा दिन घर का कामकाज संभालने के बाद भी जरा-सी भूल होने पर-पर इन्हें सजा दी जाती थीं और रोजाना पीटा जाता

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वे शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार से जख्मी हो गयी थीं। इसी नरक जैसी ज़िन्दगी से तंग आकर कल्पना जी एक दिन मौका पाकर अपने परिवार के पास जा पहुँची। लेकिन उनका यह क़दम ना सिर्फ़ उनके लिए बल्कि उनके सारे परिवार के लिए सजा बन गया। ससुराल से वापस लौटने की वज़ह से पंचायत ने उनके परिवार का दाना पानी बंद कर दिया। फिर तो वे पूरी तरह से टूट गई थीं।

इन सभी हालातों के बाद कल्पना हिम्मत हर चुकी थी और उन्हें ज़िन्दगी जीने का कोई मकसद नज़र नहीं आ रहा था। एक दिन इन्होंने कीटनाशक पीकर जिंदगी खत्म करने का भी प्रयास किया, परन्तु उनकी किसी रिश्तेदार महिला ने वक़्त रहते पर इन्हें बचा लिया। कल्पना जी मृत्यु के करीब पहुँच कर वापस आए तो मानो उन्हें एक नया जीवन मिला था, जिससे उनकी सोच में एक बड़ा बदलाव आया। वे कहती हैं कि 

कल्पना जी हिम्मत जुटाकर फिर मुंबई पहुँची और इस बार वह मुंबई काम की तलाश में गई थी। वह कपड़े सिलने में कुशल थी इसलिए उन्होंने 2 रुपए प्रतिदिन की कमाई पर गारमेंट्स की दुकान पर काम शुरू किया।

कुछ समय नौकरी के बाद कल्पना जी ने निजी तौर पर ब्लाउज सिलाई का काम शुरू किया। ये 10 रुपए प्रति ब्लाउज सिलती थी और अपने परिवार की मदद के लिए इन्हे 16 घंटे तक काम करके उन्हें पैसे दिया करती थीं।

कुछ समय बाद ग़रीबी और इलाज़ न मिलने के कारण बदकिस्मती से कल्पना जी की बहन का देहांत हो गया। इसके बाद कल्पना जी काफ़ी हद तक टूट गईं, परन्तु फिर उन्होंने ख़ुद को संभाला।

मुंबई में काम करते हुए कल्पना जी यह जान चुकी थी कि सिलाई और बुटीक के काम में बहुत मुनाफा है जिसके बात कल्पना जीने कुछ बड़ा करने की सोची। इन्होने दलितों को मिलने वाला पचास हज़ार का बिजनेस लोन लिया और सिलाई व बुटीक का कुछ सामान खरीदकर एक शॉप स्टार्ट की। उनका यह बुटीक अच्छा चलने लगा तो उन्होंने अपने परिवार वालों को और पैसे भेजने शुरू कर दिए। फिर कड़ी मेहनत करके कल्पना जी ने कुछ समय बाद अपनी जमा पूंजी से एक फर्नीचर की दुकान भी शुरू की।

बिजनेस स्टार्ट करने के बाद इन्होंने दोबारा शादी की और इनके दो बच्चे भी हुए। लेकिन बदकिस्मती से पति का साथ ज़्यादा लंबा ना रहा और जल्द ही बीमारी के कारण उनका स्वर्गवास हो गया था। अब दोनों बच्चों की जिम्मेदारी उन्हें अकेले ही उठानी थी।

मुंबई में कल्पना जी ने अपना बिजनेस अच्छे से जमा लिया और इनकी मेहनत के दम इन्होंने बाज़ार में अपनी पहचान बनाई। इनका काम लोगों को पसंद आने लगा था। जिन्होंने भी इनका काम देखा, तारीफ किए बिना नहीं रह पाया। कल्पना जी को किसी तरह पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी ‘kmani Tubes‘ नाम की एक कंपनी को सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के साथ दोबारा स्टार्ट किया जा रहा है। यह कंपनी विवादों के चलते वर्ष 1988 में ही बंद हो गई थी। इस कंपनी में काम करने वालों ने कल्पना जी से निवेदन किया कि वह इस कंपनी को फिर से स्टार्ट करने में उनकी सहायता करें।

कल्पना जी इस कंपनी को शुरू करने के लिए तैयार हो गईं। हालांकि कंपनी स्टार्ट करने में काफ़ी दिक्कतें आईं जैसे कम्पनी पर करोड़ों का कर्ज, मशीनों में खराबी, पैसों की कमी, गैर कानूनी किराए दरो का ज़मीन पर कब्जा आदि। इस कंपनी के कामगारों को कई वर्षों से सैलरी तक नहीं मिली थी, लेकिन 17 साल से बंद पड़ी इस कंपनी के कामगारों की मदद से कल्पना जी ने फिर से चला दिया।

कल्पना जी ने अपनी दिन रात की मेहनत के बाद कंपनी में फिर से जान फूंक दी। सारी चुनौतियों का सामना करते हुए कंपनी से जुड़े सारे विवाद सुलझाए तथा एक-एक करके सारी परेशानियों का हल ढूँढ लिया। इसी का नतीजा है कि आज उनकी कंपनी ‘kmani Tubes‘ का टर्नओवर करोड़ों का है।

बताती हैं कि उन्हें ट्यूब बनाने के बारे में रत्ती भर की जानकारी नहीं थी और मैनेजमेंट के बारे में भी उन्हें बिल्कुल पता नहीं था, लेकिन उनमें सीखने की ललक थी इसलिए वहाँ के कारीगरों की मदद से सारा काम सीखा और उसे आगे बढ़ाया। इस तरह से कल्पना जी ने आज एक दिवालिया हो चुकी कंपनी को अपनी मेहनत से सफलता के मुकाम पर पहुँचा दिया।

उनके इस जज्बे से सभी को प्रेरणा मिलती है कि जीवन के दुःखों से हार मान कर अपनी जिंदगी खत्म करने की बजाय मुसीबतों का डटकर सामना करना चाहिए, तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आएगा।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...