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हमारे समाज में हर प्रकार के लोग रहते हैं, जिनका हमें सम्मान करना चाहिए। अगर कोई अपनी पहचान से भिन्न है, तब इसका यह मतलब नहीं है कि उसके साथ दोहरा बरताव किया जाए। किन्नर भी हमारे समाज का हिस्सा हैं, लेकिन लोग उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं मगर किसी के साथ ऐसा व्यवहार करना क्या उचित है? आइए पढ़ते हैं एक किन्नर के संघर्षशीलता की कहानी।

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हम बात कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ के कांकेर के पखांजूर की रहने वाली मनीषा की, जो एक किन्नर हैं। जब उनके माता-पिता को यह पता चला कि उनका बच्चा किन्नर है, तो उन्होंने अपनाने से मना कर दिया था। 

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नीषा कहती हैं कि आज भी मैं अपने परिवार के पास जाना चाहती हूं, लेकिन वह मुझे अपनाने को तैयार नहीं हैं। मनीषा अपनों के न होने का दर्द समझती हैं इसलिए जब भी कोई अनाथ उन्हें मिलता है, तो वे उसे अपने साथ ले आती हैं।

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मनीषा अब तक 9 बच्चों को गोद ले चुकी हैं, जिनमें ज्यादातर बेटियां हैं।मनीषा बताती हैं कि कुछ दिन पहले पढ़ी-लिखी और संपन्न परिवार की एक महिला ने अपने बच्चे को गर्भ में मारने के लिए चूना और गुड़ाखू खा लिया था। उसी समय मनीषा अपने टीम के साथ बधाई मांगकर वापस आ रही थी। रास्ते में महिला को तड़पते हुए देखा तो अस्पताल ले गईं, लेकिन अस्पताल वाले डिलीवरी करने से डर रहे थे इसलिए मनीषा उन्हें अपने घर लाई और प्राइवेट डाक्टर बुलाकर डिलीवरी करा। 

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सरकार द्वारा सामान्यता मिलने के बावजूद भी किन्नरों को अलग समझा जाता है। उन्हें केवल शुभ अवसरों पर नाचने गाने के लिए ही हम याद करते हैं। अक्सर लोग उन्हें देखना तक पसंद नहीं करते। ऐसे हालात में भी मनीषा जैसे किन्नर सभी के लिए एक उदाहरण हैं। मनीषा कहती हैं कि मेरे प्रति लोगों का मिलाजुला नजरिया रहा है। कुछ लोग खुशी के मौके पर खुद बुलाते हैं, तो कुछ धिक्कारते भी है। मनीषा (Manisha) अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम खोलना चाहती है 

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...