4 1 1

टोक्यो ओलंपिक 2020 का जिक्र जब भी होगा, भारत के ‘गोल्डन ब्वॉय’ नीरज चोपड़ा का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। टोक्यो ओलंपिक में भारत का आखिरी इवेंट जैवलिन थ्रो ही था और नीरज पर सभी की निगाहें टिकी हुई थीं। नीरज के गोल्ड मेडल से पहले भारत के खाते में छह मेडल आ चुके थे, जिसमें दो सिल्वर और चार ब्रॉन्ज मेडल शामिल थे।

नीरज से गोल्ड की उम्मीद पूरा देश लगाए बैठा था और उन्होंने निराश भी नहीं किया और भारत की झोली में गोल्ड मेडल डालकर सभी देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। नीरज ऐसे ही गोल्डन ब्वॉय नहीं बने, इसके पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी है। गोल्ड मेडल जीत करोड़ों रुपये का ईनाम पाने वाले नीरज के पास एक समय 1.5 लाख रुपये का जैवलिन खरीदने का भी पैसा नहीं था,

ना ही कोच रखने का। उन्होंने इन कमियों को अपनी मेहनत से पूरा किया और ओलंपिक खेलों में भारत को एथलेटिक्स पहला गोल्ड मेडल दिलाया, इतना ही नहीं इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज महज दूसरे भारतीय हैं, इससे पहले 2008 में शूटिंग में अभिनव बिंद्रा ने इंडिविजुअल गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।

महंगा खेल होने की वजह से नीरज के सामने आर्थिक हालत आड़े आ गए। उनके संयुक्त परिवार में उनके माता-पिता के अलावा तीन चाचा के परिवार भी शामिल हैं। एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे 10 भाई बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं। ऐसे में वे परिवार के लाड़ले भी हैं।

परिवार की हालत ठीक नहीं थी और उन्हें 1.5 लाख रुपये का जैवलिन नहीं दिला सकते थे। उनके पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने जैसे-तैसे सात हजार रुपये जोड़े और उन्हें प्रैक्टिस के लिए एक जैवलिन लाकर दिया। एक बार खेल मैदान में उतरने के बाद नीरज ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक सफलता हासिल करते चले गए।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...