कहानियां बनती हैं मुश्किलों से, इंसान के जुनून से, गरीबी से, खून पसीने से। यूं ही नहीं कोई खिलाड़ी रातोंरात देश को नाम चमकाने के लिए Tokyo Olympic चला जाता। आज हम आपको बताने जा रहे हैं देश की उस बेटी की कहानी जो टोक्यो ओलंपिक खेलने जा रही है। लेकिन सफर आसान नहीं था। घर में गरीबी थी पर भी रेवती वीरामनी ने हार नहीं मानी। अब वो टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने जा रही हैं।

रेवती वीरामनी जब 7 वर्ष की थी जब उनके पिता का देहांत हो गया था। तमिलनाडु की रहने वाली रेवती की मां भी पिता के दुनिया से अलविदा कहने के एक वर्ष बाद चल बसी थीं।

Also read: Success Story: मां दूसरों के खेतों में छीलते थे घास, बेटे ने लगातार 30 बार असफल होने के बाद भी नहीं मानी हार, 31 वीं बार परीक्षा पास करे बने DSP, जानिए पूरी कहानी

हमारा समाज कुछ ऐसा ही है। रेवती की नानी को गांव देहात में इस बात को लेकर ताने सुनने पड़ते थे कि वो लड़की को दौड़ने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रही हैं, लेकिन उन्होंने ऐसे दकियानूसी सोच वाले समाज की एक ना सुनी और रेवती को रनिंग के लिए प्रोत्साहित किया। रेवती के सहयोगियों ने भी उनकी काफी आर्थिक मदद की।

कई वर्षों तक संघर्ष करने के बाद उन्हें दक्षिणी रेलवे में नौकरी मिल गई। रेवती ने 400 मीटर की दौड़ 53.55 सेकेंड में पूरी की। और वो चार गुणा 400 मीटर मिश्रित रिले टोक्यो ओलंपिक के लिए सेलेक्ट हो गई। 23 वर्षीय रेवती ट्रायल देने आए महिला धावकों में से सबसे तेज दौड़ रही थी।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...