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एम एस धोनी. पहली बार जब सेंचुरी मारी थी, तो पाकिस्तान को तहस-नहस कर दिया था. पाकिस्तानी बॉलर्स को ऐसा मारा था जैसे हफ़्ते भर पहले उन सबने मिलकर धोनी की भैंस खोल ली हो. ऐसा जैसे दुश्मनी निकाल रहा हो. वो जहां से आता है, वहां होता भी असल में ऐसा ही है. वहां से आने वाले लोग आम लोगों की तरह नॉर्मल नहीं होते. स्कैंडलाइज़ मत होइए. ये बुरे अर्थों में नहीं है.

वहां सचमुच नॉर्मल लोग नहीं होते हैं. और ऐसा मैं फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस से कह रहा हूं. झारखंड में बोकारो, रांची, जमशेदपुर में समय गुज़ारा है तब ये बात कह रहा हूं. वहां का दोस्त आपके लिए जान दे देगा. डूब जायेगा सिर्फ इसलिए कि आप सांस लेते रहें. ऐसे आदमियों पर छोटा सा अहसान कर दीजिये तो महाकुम्भ में भी ढूंढकर आपको खैनी पीटकर खिलायेगा. और दुश्मनी उतनी ही बड़ी मुसीबत. कब कहां ढूंढकर मारेगा, पता लगाना मुश्किल है. 

जब पाकिस्तान को मारा था तो धोनी कुछ भी नहीं था. उसकी पीठ पर पहली इनिंग्स में ज़ीरो पर रन आउट होने का बोझ था. होता ये है कि हम छोटे शहरों से आने वाले लोग किसी भी मैदान में उतरने से पहले ही अपने ऊपर बोझ टांगे हुए होते हैं. हम जहां भी पहुंचते हैं, किसी की थपकी तो किसी के धक्के से पहुंचते हैं. 

पहली बड़ी ट्रॉफी जीती तो टीम के लोगों को पकड़ा दी. खुद कहां चला गया, मालूम नहीं. अगली दफ़ा जब दिखा तो बाल कटवा चुका था. मालूम चला मन्नत मांगी थी. ट्रॉफी जीतने पर बाल छंटवा देता है. एक कप्तान जो खुद पर उतना ही भरोसा करता है जितना उस पर, जिसमें आस्था रखता है. बंदूक, बाइक और वीडियो गेम्स का शौकीन माही वो बना जिसने कप्तान और प्लेयर्स के बीच में बनी एक अदृश्य खाई को पाट दिया.

इसी धोनी के बारे में कहा जाता था कि उसे भले ही एक अलग सुईट मिला हो लेकिन वो प्लेयर्स के लिए हमेशा खुला रहता था. अगर दरवाज़े के बाहर अखबार पड़ा है, मतलब धोनी अभी सो कर नहीं उठा है. अखबार नहीं है तो आप कभी भी जा सकते हैं. ये धोनी के ठीक पहले संभव नहीं था. पहले दरवाज़े के बाहर पड़े अखबार कुछ भी नहीं कहते थे. पहले ट्रॉफी पकड़े कप्तान दिखते थे. पहले फेयरवेल मैच दिखते थे. 

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...