अंग्रेजों के समय में बने इस स्टेशन को लोग सौंदर्य, सौहार्द्र और साझी संस्कृति के तौर पर भी जानते हैं, तो कन्फ्यूज़न होने के लिए भी. कभी पुलिस के लिए समस्या पैदा हो जाती है, तो कभी यात्रियों के लिए भी.
दिलवा स्टेशन से गुजरने वाली अप और डाउन रेलवे लाइन दो राज्यों के बीच बंटती है. गया की ओर से आने वाले यात्री जब इस स्टेशन पर उतरते हैं, तो उनके कदम बिहार में ही रहता हैं, लेकिन अगर धनबाद की ओर से आते हैं, तो उनके पांव झारखंड की सीमा में उतरते हैं. यहां तक होता है कि स्टेशन पर पांच कदम चलने से ही राज्यों के नाम तक बदल जाते हैं.
इस स्थिति के मद्देनज़र कभी कोई घटना हो जाए तो दो राज्यों की पुलिस के बीच अक्सर कन्फ्यूज़न हो जाता है. सीमा विवाद के कारण कभी पुलिस पहुंच नहीं पाती, तो कभी एक ही घटना को लेकर दोनों राज्यों की पुलिस पहुंच जाती है.
दिलवा एक छोटा सा स्टेशन है, जहां तक पहुंचने के लिए सड़क काफी खराब है. दिलवा स्टेशन के एक छोर पर कोडरमा ज़िले के चंदवारा प्रखंड की पंचायत लगती है, जबकि दूसरे छोर पर बिहार का रजौली अनुमंडल लगता है. हालांकि दिलवा स्टेशन पर आसनसोल वाराणसी पैसेंजर और ईएमयू अप-डाउन ठहरती है, जबकि डाउन लाइन पर केवल इंटरसिटी रुकती है.
कोडरमा व धनबाद रेलमंडल के दिलवा स्टेशन के नज़ारे के अलावा, दो राज्यों के बीच स्टेशन का बंटा होना खासा आकर्षण पैदा करता है. यह एक ऐतिहासिक क्षेत्र है, जहां बोर्ड लगाकर रेलवे ने झारखंड और बिहार की सीमा तय की है. बिहार से झारखंड साल 2000 में अलग हो गया था,