न्यूज़ डेस्क : कभी-कभी मनुष्य पर संकट का इस कदर पहाड़ टूट पड़ता है। कि मानो वो जिंदगी जिने लायक ही ना बचा हो। आज हम आपको एक ऐसे ही कहानी रूबरू करवाएंगे। जिनके पास ना रहने को घर है, ना खाने को रोटी खानदान से सभी की अर्थी उठ चुकी हैं । लेकिन, फिर भी अकेले जीने को मजबूर है। नाम है कौशल्या देवी लगभग 75 वर्ष की होगी। और बिहार के नालंदा ज़िले के करायपरसुराय प्रखंड के दिरीपर गांव में रहती हैं।

रहना शब्द कहना बिल्कुल भी सही नहीं होगा। क्योंकि, वह जो जिंदगी काट रही है। शायद ही ऐसा कोई मानव हो जो इस कदर जी रहा होगा। ना सिर पर छत है। न खुद का घर है। इसलिए मजबूरन एक शौचालय में रहने को मजबूर हैं। उनके साथ बस आठ-दस बरस की पोती रहती है। परिवार में कोई और नहीं है। पति, बेटे, बहू सबकी मौत हो चुकी है।

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पैसे न देने की वजह से “प्रधानमंत्री आवास योजना” से नाम हटा दिया गया: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नालंदा ज़िला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह ज़िला भी कहलाता है। लेकिन, फिर भी अभी तक कौशल्या देवी को किसी आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। आवास योजना तो छोड़ दीजिए, और किसी भी दूसरी तरह की सरकारी योजना का भी लाभ उन्हें नहीं मिला है।

क्योंकि उनके परिवार में ऐसा कोई व्यक्ति है ही नहीं जो लाभ दिलवा सके। दादी-पोती बड़ी मुश्किल से घर-घर जाकर भीख मांगकर अपना गुज़ारा कर रही हैं। ग्रामीणों की माने तो आवास देने के लिए साल 2017 के बाद से सरकारी कागज़ में दो बार कौशल्या देवी का नाम आया था। लेकिन उनसे बदले में पैसे मांगे गए थे, जो ज़ाहिर है उनके पास नहीं थे। इसलिए उन्हें खुद का घर कभी मिला ही नहीं।

कई लोग आते हैं और चले भी जाते हैं लेकिन कोई भी मदद नहीं करता: वहां के सोशल वर्कर बताते हैं कि अधिकारी आते हैं और चले जाते हैं। लेकिन कोई भी कौशल्या देवी की मदद नहीं करता है। हमारे देश में, भले ही केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, दावे बड़े-बड़े किए जाते हैं।

आंकड़ों में भी बताया जाता है कि बहुत कुछ किया गया है। लेकिन जब आप ज़मीन पर जाते हैं। तो सच्चाई कुछ और ही पता चलता है। बता दें कि नीतीश सरकार सरकार भले ही महिला सशक्तिकरण की सुरक्षा की बड़ी-बड़ी बातें करते हो। लेकिन सच्चाई कुछ और है।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...