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हम क्रिकेट के जेट युग में हैं. धूम-धड़ाका क्रिकेट. 31 गेंद पर सेंचुरी बनती है, 12 पर हाफ सेंचुरी. मैदान पर चौके-छक्कों की भयंकर आंधी चलती है. अपर कट, हैलीकॉप्टर शॉट, दिल स्कूप, रिवर्स स्वीप जैसे न जाने कितने किस्म के नए शॉट इजाद हो गए हैं इस T20 क्रिकेट के दौर में. वनडे में 400 प्लस के स्कोर बनते हैं, और फिर चेज़ भी हो जाते हैं.

वो पहले विश्व कप का सबसे पहला मैच था. शनिवार का दिन. आमने सामने टीमें थीं भारत और इंग्लैंड की. मैदान क्रिकेट का मक्का − लार्ड्स. उन दिनों विश्व कप क्या पूरे वनडे क्रिकेट का आइडिया ही क्रिकेटरों के लिए नई चीज़ थी. चार ही साल तो हुए थे, जब एक प्रयोग के तौर पर खेला गया इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया वनडे मैच दर्शकों में गज़ब लोकप्रिय हुआ था. वहीं से विश्व कप का आइडिया निकला. उन दिनों वनडे 60 ओवर के हुआ करते थे. तो 7 जून के इस मैच में इंग्लैंड पहले खेलने उतरा और 60 ओवर में 334 का स्कोर बनाया.

आश्चर्य ये था कि गावस्कर इस दौरान आउट भी नहीं हुए.   वैसे  मैच में उनकी इस धीमी पारी के पीछे बतानेवालों ने कई अलग-अलग वजहें बताईं −

  वनडे क्रिकेट में उस समय 300 का स्कोर जीत की गारंटी माना जाता था. ऐसे में हार तो भारत अपनी पारी शुरु होने के पहले ही मान चुका था. लेकिन उस विश्वकप का ढांचा कुछ ऐसा था कि दो टीमों के बराबर रहने पर बेहतर नेट रन रेट वाली टीम आगे जाएगी. ऑल आउट होने से भारत को नेट रन रेट का नुकसान हो सकता था, इसलिए गावस्कर रन ना बनने के बाद भी मैदान पर डटे रहे.

  अफ़वाह तो ये भी थी कि गावस्कर विश्व कप के लिए वेंकटराघवन के कप्तान चुने जाने से गुस्सा थे.

गावस्कर को खास ‘टेस्ट क्रिकेट’ के लिए बना आदर्श ओपनर गिना जा सकता है. उनकी विकेट पर टिकने की क्षमता और तेज़ गेंदबाज़ी को खेलने की काबिलियत इसकी गवाही देती थी. ऐसे में कई टेस्ट क्रिकेट को चाहनेवाले तो ये भी मानते हैं कि गावस्कर यह पारी अपने प्यारे टेस्ट क्रिकेट की ओर से, और नए फॉर्मेट वनडे क्रिकेट के विरोध में खेल रहे थे.

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...