कई ऐसे लोग हैं जो अच्छी खासी नौकरी छोड़ ज़रूरतमंद लोगों की सेवा में जुट जाते हैं। उन्हीं में से एक सरिता कश्यप भी हैं, जो एक सिंगल मदर हैं। सरिता ग़रीब बच्चों को फ़्री में खाना खिलाती हैं, यही नहीं अगर आपके पास पैसे नहीं हैं तो वो आपको भूखा जाने नहीं देंगी। वह उन लोगों को भी पूरे मन से खाना खिलाती हैं।
सरिता इसी फूड स्टॉल से अपने घर का ख़र्चा निकालती हैं, वह रोज़ सुबह पीरागढ़ी के सीएनजी पंप के पास अपनी स्कूटी पर राजमा-चावल और कढ़ी-चावल बेचती हैं। वहीं वह हाफ़ प्लेट राजमा-चावल 40 रुपये में और फ़ुल प्लेट 60 में ग्राहकों को देती है। लेकिन अगर आपके पास पैसे नहीं है तो वह भूखा नहीं जाने देंगी, सरिता उन ग्राहकों को भी खाना खिलाती हैं.
सरिता ने इससे पहले ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में 19 साल तक काम किया है। वहां सैलरी भी अच्छी थी, लेकिन सुकून नहीं था। जिसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और तय किया कि वह कुछ अच्छा करेंगी, जिसके बाद उन्होंने फूड स्टॉल लगाने का फ़ैसला किया। पश्चिमी दिल्ली में सरिता का अपनापन राजमा चावल काफ़ी फ़ेमस है।
वह रोज़ाना 100 बेघर लोगों को खाना खिलाती हैं, जिसमें ग़रीब बच्चे शामिल होते हैं। खुद आर्थिक तंगी से जूझने के बावजूद सरिता उन ज़रूरतमंद लोगों को खाना खिलाती हैं। सरिता के अनुसार वह सभी को अपना बच्चा समझकर खिलाती हैं,
जब कोई भूखा खाना खा रहा होता है तो उन्हें लगता है कि उनकी बेटी खा रही है। ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों को खिलाते वक़्त उन्हें ख़ुशी मिलती है।
सरिता ने अपना काम साल 2019 के दिसंबर में शुरू कर दिया था। शुरुआत में उन्हें बच्चों को फ़्री में खाना खिलाने में काफ़ी मुश्किलें आती थीं, क्योंकि पैसों की कमी होती थी। हालांकि लोगों को जब पता चला तो वह भी मदद के लिए आगे आए।
कई ऐसे लोग हैं जो खाना खाने के बाद अपनी इच्छा से पैसे दे देते हैं और कहते हैं कि उनकी तरफ़ से लोगों को खाना खिला दें। बेटर इंडिया को सरिता ने बताया कि अब वह जल्द होम डिलीवरी शुरू करेंगी, ताक़ि उनका खाना लोगों के घर-घर तक पहुंच पाए। इसके लिए उनकी कोशिश जारी है।
शुरुआत में फूड स्टॉल लगाना आसान नहीं था। सिंगल मां होने के नाते सरिता को अपनी बेटी को भी सपोर्ट करना था, जो इस वक़्त कॉलेज में पढ़ाई कर रही है। ऐसे में उन्हें एहसास हुआ कि वह नॉन प्रॉफिट सोशल वेंचर की शुरुआत नहीं कर पाएंगी।
तब उन्हें अपनापन राजमा चावल का आइडिया आया था। उन्होंने बताया कि उन्हें लगा कि इस काम को करने से वह ना सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकेंगी बल्कि ज़रूरतमंद लोगों को खाना भी खिला सकेंगी।
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साभार :- DAinik Jagran