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मनुज बली नहीं होत है, समय होत बलवान। कोरोना काल में यह उक्ति अपने अलग-अलग तेवर में सामने आ रही है। कहीं पिता के कंधे पर बेटे की अर्थी है तो कहीं मेहंदी का रंग उतरने से पहले दूल्हन की चिता सज रही है। वाराणसी शहर के रमना निवासी जायसवाल परिवार भी कोरोना के कारण कुछ ऐसी ही हृदयविदारक स्थिति का सामना करना पड़ा है।

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जयप्रकाश जायसवाल और उनके तीन बेटों ने जनवरी महीने से ही इकलौती बिटिया दिव्या की शादी की तैयारी शुरू कर दी थी। 17 मई को उनके घर में शहनाई की मंगल ध्वनि गूंजने वाली थी, लेकिन इससे पहले ही कोरोना काल बनकर दिव्या पर टूट पड़ा। बीते 27 अप्रैल को दिव्या अपनी मां मालती जायसवाल और बड़े भाई दीपक के साथ जाकर अपने लिए मनपसंद शादी का जोड़ा

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और जयमाल के लिए घाघरा चोली लेकर आई थी। उसके भाईयों और पिता ने उसकी शादी का कार्ड भी बांटना शुरू कर दिया था। इसी बीच दो मई को दिव्या को सर्दी-जुकाम हुआ। अगले ही दिन उसे बुखार भी आने लगा। मझला भाई प्रदीप भी सर्दी जुकाम से पीड़ित हो गया। एक परिचित के डॉक्टर से पूछ कर दिव्या के पिता ने वायरल बुखार की दवा देनी शुरू की।

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डॉक्टर के कहने पर तीन मई को दिव्या और प्रदीप की कोरोना जांच कराई गई। तीन दिन बाद दोनों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। परिवार के सभी सदस्यों के होश उड़ गए। दोनों भाई बहन होम आइसोलेट हो गए। कोरोना की दवा शुरू हुई।

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सबको उम्मीद थी कि सब कुछ अच्छा हो जाएगा, लेकिन नौ मई की सुबह दिव्या की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। उसका ऑक्सीजन लेबल 70 पहुंच गया। परिवार के सदस्य उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराने के लिए घर से निकले, लेकिन बीच रास्ते में ही दिव्या की सांसे थम गईं। शहनाई की ध्वनि के बीच बेटी की विदाई की जगह चीख-पुकार के बीच दिव्या की अर्थी उठानी पड़ी।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...