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काशी के एक रिक्शा चालक ने संघर्ष की एक नई मिसाल कायम की है। काशी में रिक्शा चलाने वाले नारायण जायसवाल ने लंबे संघर्ष के बाद अपने बेटे को IAS बनाया था, उनके बेटे की शादी एक IPS अफसर से हुई है। दोनों बेटा बहू गोवा में पोस्टेड है। मीडिया से बातचीत करते हुए नारायण बताते हैं कि उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है।

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वह अलईपुरा में किराए के मकान में रहते थे। नारायण के पास 35 रिक्शे थे, जिन्हें वह किराए पर चलवाते थे। लेकिन पत्नी इंदु को ब्रेन हैमरेज होने के बाद उसके इलाज के लिए 20 से ज्यादा रिक्शे बेचने पड़े। कुछ दिन बाद उन्की पत्नी की मौत हो गई।

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तब उनका बेटा गोविंद 7th में था। गरीबी का आलम ऐसा था कि उनके परिवार को दोनों टाइम सूखी रोटी खाकर रातें काटना पड़ती थी। उन दिनों को याद करते हुए नारायण कहते है कि मैं खुद गोविंद को रिक्शे पर बैठाकर स्कूल छोड़ने जाता था।

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हमें देखकर स्कूल के बच्चे मेरे बेटे को ताने देते थे, आ गया रिक्शेवाले का बेटा… मैं जब लोगों को बताता कि मैं अपने बेटे को IAS बनाऊंगा तो सब हमारा मजाक बनाते थे।

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नारायण आगे बताते है कि बेटियों की शादी में बाकी रिक्शे भी बिक गए। बाद में उनके पास सिर्फ एक रिक्शा बचा था, जिससे चलाकर वह अपना घर चलाता था। पैसे की तंगी के कारण गोविंद सेकंड हैंड बुक्स से पढ़ता था। गोविंद जायसवाल 2007 बैच के IAS अफसर हैं।

वे इस समय गोवा में सेक्रेट्री फोर्ट, सेक्रेट्री स्किल डेवलपमेंट और इंटेलि‍जेंस के डायरेक्टर जैसे 3 पदों पर तैनात हैं। हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद 2006 में सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए थे। वहां उन्होंने पार्ट-टाइम जॉब्स कर अपनी ट्यूशन्स का खर्च निकाला।

उनकी मेहनत का फल उन्हें मिला गोविंद पहले अटैम्पट में ही 48 वीं रैंक के साथ IAS बन गया। गोविंद की बड़ी बहन ममता ने मीडिया से बताया कि भाई बचपन से ही पढ़ने में तेज था।

मां के देहांत के बाद भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी। उसके दिल्ली जाने के बाद पिता जी बड़ी मुश्क‍िल से पढ़ाई का खर्च भेज पाते थे। घर की हालत देख भाई ने चाय और एक टाइम का टिफिन भी बंद कर दिया था।

समय मेरी उम्र 13 साल थी, लेकिन उसी दिन ठान लिया कि मैं IAS ही बनूंगा, क्योंकि यह सबसे ऊंचा पद होता है। हम 5 लोग एक ही रूम में रहते थे। पहनने के लिए कपड़े नहीं थे। बहन को लोग दूसरों के घर बर्तन मांजने की वजह से ताने देते थे। बचपन में दीदी ने मुझे पढ़ाया। दिल्ली जाते समय पिता जी ने गांव की थोड़ी जो जमीन थी,

वो बेच दी। इंटरव्यू से पहले बहनों ने बोला था कि अगर सिलेक्शन नहीं हुआ तो परिवार का क्या होगा। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। आज मैं जो कुछ भी हूं, पिता जी की वजह से हूं। उन्होंने मुझे कभी अहसास नहीं होने दिया कि मैं रिक्शेवाले का बेटा हूं। गोविंद के IAS बनने के बाद परिवार अब वाराणसी में बने आलीशान मकान में रहता है ।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...