किसी ने सही ही कहा है कि शिक्षा उस शेरनी की दूध है जो पिएगा वो दहारेगा | लेकिन आज के समय में सभी लोग आसानी से शिक्षा पा ले ये संभव नहीं है आज हम आपको एक ऐसी उदाहरन देने जा रहे है जिससे आपको पता चलेगा की आज भी हमारे समाज में शिक्षा का महत्त्व जात पात को देखकर दिया जाता है | जी हाँ दोस्तों! देश (India) की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य बिहार (Bihar) का एक ऐसा गांव है दुबे टोला, जहां महादलित जाति के लोग रहते हैं। य

हां बने ढाई सौ घरों में लगभग हजार से ज्यादा लोग इस गाव में रहते हैं, जिनमें से 900 लोग मुसहर जाति के हैं। यादव और अन्य जाति भी यहां रहती है। इस पूरे गांव में कोई भी ऐसा सदस्य नहीं है, जिसने मैट्रिक के परीक्षा अपन जीवन में कभी दी हो। वही अब महादलित परिवार की बेटी इंद्रा (Mushar Girl Indra) ने मैट्रिक की परीक्षा देकर सीमा को पार किया है। और एक नया रिकॉर्ड कायम की है | और अपने समाज के अन्य लोगों को ये बताई है की हमलोग भी आगे बढ़ सकते है हमलोग भी पढ़ सकते है |

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गाँव में छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाती है इंद्रा

इंद्रा का पढ़ाई के प्रति खासा रुझान है। उनका कहना है कि काफी पहले बचपन बचाओ आंदोलन वालों ने मुंबई में मजदूरी कर रहे इस गांव के 5 बच्चों को मुक्त कराया था। वह लोग उन पांचों बच्चों को लेकर गांव आए थे। उन लोगों ने उन्हें शिक्षा के लिए जोड़ने की कोशिश भी की थी। इसी दौरान इंद्रा भी बचपन बचाओ आंदोलन वालों के संपर्क में आ गई और उन लोगों ने उन्हें प्रेरित किया। इसी का नतीजा है |

कि आज वह मैट्रिक की परीक्षा दे पाई है। और वो खुद तो पढ़ती ही है | लेकिन खुद के साथ-साथ अपने गाव के सभी बच्चो को भी पद्धति है | इतना ही नहीं इन्द्रा कम उम्र मे होने वाली शादियों से नुकसान और दहेज प्रथा के खिलाफ भी बच्चों मे जागरुकता फैलाने का काम करती है. वह पढ़ लिखकर वकील बनना चाहती है ताकि वह गरीब समाज के लोगों को मुफ्त न्याय दिलवा सकें. 

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...