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उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव नारायण कला में रहने वाले मंगलेश दुबे जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर ना सिर्फ़ कामयाबी हासिल की बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक मिसाल क़ायम की है, जिनका मानना है कि अभावों में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है।

कुछ लोग अपने ग़रीबी और परेशानियों को ही अपनी क़िस्मत मानकर उन्हें झेलते हुए जीवन जीते रहते हैं और कुछ लोग उन सबसे अलग कुछ ऐसा कर दिखाते हैं जिससे क़िस्मत ख़ुद उनके आगे घुटने टेक देती है।

कुछ लोग गरीबी का बहाना बनाकर भी नहीं पढ़ते हैं तो कुछ लोग गरीब होकर भी अपना हौसला बुलंद कर पढ़ाई को जारी रखते हैं और एक दिन सफलता पाकर अपने परिवार का नाम गौरवान्वित करते हैं |

हमेशा ही बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के रहने वाले छोटे से गांव नारायणपुर मंगलेश दुबे जिन्होंने अपनी मेहनत और कामयाबी के दम पर आज अपने पिता का नाम आसमान में पहुंचा दिया और खुद डिप्टी कलेक्टर बन गया |

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मंगलेश दुबे

मंगलेश दुबे (Manglesh Dubey) भी उन्हीं में से एक हैं, उन्होंने भी तमाम परेशानियों और अभावों के बावजूद, यहाँ तक कि कोचिंग और किताबों तक की कमी होने पर भी वर्ष 2015 में UPPCS क्रैक किया और Second टॉपर का खिताब हासिल करके सबको आश्चर्य चकित कर दिया।

अब वे बतौर डिप्टी कलेक्टर अपनी ड्यूटी पर कार्यरत हैं। एक मामूली मास्टर थे मंगलेश दुबे के पिता और उनकी आर्थिक स्थिति भी उठने अच्छी नहीं थी कि जो अच्छा से अपनी पढ़ाई को आगे जारी रख सके लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष करते रहे लेकिन एक दिन सफलता इनकी कदम चूमे |

पिताजी थे पोस्ट मास्टर

पिताजी गांव के एक मामूली मास्टर थे जो कुछ बच्चे को पढ़ाते थे और अपना गुजारा बसेरा करते थे लेकिन उनके बेटा मंगलेश दुबे ने जो काम किया वह बहुत तारीफ करने योग्य है मंगलेश दुबे को उनके पिता का भी बहुत साथ मिला और वह पूरा सारे अपने पिता को देते हैं

उनके पिताजी एक पोस्ट मास्टर थे, हालांकि अब वे सेवानिवृत्त हो गए हैं, पर उस समय उन्हीं की सैलरी के हवाले बच्चों की पढ़ाई का ख़र्च और घर का ख़र्च था। मंगलेश की दो बहनें और एक भाई था,

इस तरह 4 बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी उनके पिताजी के कंधों पर थी, लेकिन मंगलेश के पिताजी ने पैसों की कमी को कभी पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया और उन्हें UPSC एग्जाम की तैयारी के लिए बाहर भेजा।

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मंगलेश ने प्रयागराज में जाकर अपनी UPPCS परीक्षा (UPPCS Exam) की तैयारी शुरु कर दी। मंगलेश के पिता, उन्हें बड़ी मुश्किलों के साथ पैसे भेजा करते थे। हालांकि कभी-कभी पैसे पर्याप्त नहीं हो पाते थे। इस कारण उनको किताबों और अन्य पढ़ाई सम्बंधी सामग्री का अभाव रहता था। कोचिंग की फीस देने के लिए भी उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था। किताबें ना होने की वज़ह से मंगलेश जैसे तैसे अपने रूममेट से किताब मांग कर पढ़ा करते थे

लगातार तीन बार दी परीक्षा और पूरा किया सपना

इस तरह उन्होंने पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष किया और फिर साल 2011 में पहली बार UPPCS की परीक्षा दी, जिसमें वे सफल भी रहे। इस परीक्षा के बाद उनका चुनाव आबकारी विभाग में हो गया, लेकिन उनका मन तो कुछ और ही था।

मंगलेश ने साल 2012 में फिर से प्रयास किया और इस बार भी उन्हें सफलता मिली। इस बार उनका चयन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के तौर पर हुआ। परन्तु इस बार भी वे संतुष्ट नहीं थे।

उन्होंने वर्ष 2015 में एक बार फिर UPPCS का एग्जाम (UPPCS Exam) दिया और आखिरकार अपनी मनमुताबिक कामयाबी प्राप्त की।

उन्होंने UPPCS की परीक्षा में दूसरी रैंक हासिल की और वेसीधा डिप्टी कलेक्टर की पोस्ट पर जौनपुर में तैनात हुए। आखिरकार मंगलेश ने अपना सपना पूरा किया और सभी के लिए मिसाल क़ायम की।

उनकी कहानी से सभी छात्रों को सीख मिलती है कि कामयाबी हिम्मत और मेहनत से मिलती है, न कि सुख और सुविधाओं भरे माहौल से।

अतः यह नहीं सोचना चाहिए कि फैमिली बैकग्राउंड, ग़रीबी जैसी समस्याओं का सामना करते हुए कैसे सफल होंगे? अपने आत्मविश्वास व परिश्रम की ताकत से आप बड़ी से बड़ी सफलता भी प्राप्त कर सकते हैं।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...