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बिहार में पंचायत चुनाव को लेकर मंगलवार को नीतीश कैबिनेट की अहम बैठक होने जा रही है. इसमें पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म होते देख अधिकारियों को प्रशासकीय भूमिका देने के फैसले पर मुहर लग सकती है. दरअसल, कई कारणों से बिहार में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव समय पर नहीं हो सका है. कोरोना संक्रमण के कारण जहां सारी गतिविधियां लगभग ठप्प रहीं, वहीं अब बरसात के मौसम की वजह से भी अगले 3 महीने तक पंचायत चुनाव होना संभव नहीं है.

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पंचायती राज के करीब ढाई लाख जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल 15 जून को खत्म हो रहा है. सूत्र बता रहे हैं कि अब ऐसे में बिहार सरकार ने 15 जून के बाद इनके अधिकार और कर्तव्य अधिकारियों को देने का मन बना लिया है. उप विकास आयुक्त, प्रखंड विकास पदाधिकारी और पंचायत सचिव के हाथों प्रशासक की भूमिका देने की योजना सरकार द्वारा बनाई गई है.

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जिला परिषद का संचालन जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी यानी उप विकास आयुक्त करेंगे, जबकि प्रखंड स्तरीय पंचायत समिति का संचालन प्रखंड विकास पदाधिकारी के जिम्मे होगा और ग्राम पंचायत सरकार का संचालन पंचायत समिति सचिवों के जिम्मे देने की तैयारी है.

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दरअसल, पंचायत चुनाव टलने पर कार्यकाल बढ़ाने का कोई कानून बिहार में नहीं है, इसलिए सरकार ने कैबिनेट के माध्यम से प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल की अनुमति से अध्यादेश जारी करने की योजना बनाई है. चुनाव के बाद नए पंचायत प्रतिनिधियों की शक्तियां कायम रहे इस बात का ध्यान रखा जाएगा. अफसरों को प्रशासक तो बनाया जाएगा, लेकिन नई योजना लाने का अधिकार उन्हें नहीं होगा. साथ ही चालू योजनाओं को चलाने लायक ही उन्हें आर्थिक शक्तियां सौंपने की योजना है.

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लंबे समय तक पंचायत चुनाव ईवीएम को लेकर जारी गतिरोध के कारण टलता रहा और कोरोना के साथ ही मानसून की समस्या भी अब सामने है. अगर विधानसभा चुनाव की तरह अक्टूबर-नवंबर तक पंचायत चुनाव हो तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी. बिहार में पंचायत प्रतिनिधि कार्यकाल में विस्तार चाहते थे और इसे लेकर सियासत भी काफी तेज हुई. भाजपा सांसद रामकृपाल यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ाने की मांग की थी.

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाने की मांग की थी. बिहार में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था के तहत करीब ढाई लाख प्रतिनिधि ग्रामीण विकास के काम से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं. कार्यकाल की समाप्ति और अफसरों द्वारा दायित्व संभाल लेने के बाद जनप्रतिनिधियों की विकास प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं रह पाएगी. इन सभी के पास अगले चुनाव तक चुपचाप बैठने के अलावा कोई बिकल्प नही बचेगा, इस लिहाज से आज कैबिनेट की बैठक काफी महत्वपूर्ण है.

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...