यही कारण है कि 18 वर्षीय शिवा ने अपने लिए एक कोविड वॉर्ड बनाने का फैसला किया- बांस की छड़ों से बना बेड, जिसे उसके घर के आंगन में स्थित एक पेड़ की टहनियों से बांधा गया है.कोठानंदीकोंडा में रहते हुए, जो नालगोंडा ज़िले के अंदरूनी इलाके में बसा एक छोटा सा गांव है, शिवा का टेस्ट 4 मई को पॉज़िटिव आया था. शिवा ने दिप्रिंट को बताया कि गांव के वॉलंटियर्स ने उससे कहा कि वो घर पर रहे और अपने परिवार से अलग रहे. 

कोठानंदीकोंडा में करीब 350 परिवार रहते हैं और ये ज़िले के अदाविदेवुलापल्ली मंडल के अंतर्गत आने वाले बहुत से छोटे आदिवासी गांवों में से एक है. यहां के निवासियों का कहना है.

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कि सबसे नज़दीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) 5 किलोमीटर दूर है और किसी गंभीर आपात चिकित्सा की स्थिति में गांवों के लोगों को अस्पताल के लिए 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.

राज्य के ग्रामीण इलाकों में कोविड मामले बढ़ने पर ज़िला प्रशासन ने 13 मई को मंडल में स्थित अनुसूचित जनजाति हॉस्टल को एक आइसोलेशन केंद्र में तब्दील कर दिया. लेकिन इन इलाकों में रहने वाले बहुत से लोगों को अभी इसका पता ही नहीं है.शिवा ने दिप्रिंट से कहा, ‘यहां पर कोई आइसोलेशन केंद्र नहीं था. 

शिवा ने कहा कि ये देखते हुए कि उसके परिवार में चार सदस्य हैं और ‘अपने कारण मैं किसी को संक्रमित नहीं कर सकता’ उसने पेड़ पर आइसोलेट करने का फैसला किया. उसने आगे कहा, ‘मुझे नहीं पता कि गांव के वॉलंटियर्स ने सरपंच को मेरे पॉज़िटिव होने के बारे में बताया कि नहीं.

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...