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कोरोना से मरने वाले रोगियों की संख्या को गोलमोल करके दबाने के पीछे डेथ ऑडिट से बचना भी एक कारण है। डेथ ऑडिट में हर अस्पताल को मौत का कारण और जवाब देना पड़ता है।

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इसमें यह भी बताना पड़ता है कि रोगी का इलाज किस-किस डॉक्टर ने किया है और उसे कौनसी दवाएं दी गई हैं।

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यह भी सवाल किया जाएगा कि फलां दवा के स्थान पर फलां दवा क्यों नहीं दी गई जिससे रोगी की जान बच सकती थी। इन सबसे बचने के लिए अस्पताल ऐसी मौतों का ब्योरा आसानी से अपलोड कर दे रहे हैं जिनमें अधिक जवाब नहीं देना पड़ेगा।

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इसके पहले शासन की ओर से पिछले साल जो डेथ ऑडिट टीम गठित हुई थी, उसे बहुत पापड़ बेलने पड़े थे।

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खासतौर पर निजी अस्पतालों को तीन-चार बार नोटिस जारी की गई और इन संस्थानों ने ब्योरा देने में डेढ़ महीने का समय लगा दिया था।

इसके बाद ब्योरा दिया था। डेथ कमेटी के अध्यक्ष रहे डॉ. जेएस कुशवाहा ने बताया कि एक-एक करके सभी ने जवाब दे दिया था लेकिन इस बार मौतें कई गुना अधिक हैं जिससे यह खेल रच दिया गया है। मौतों से उनके दिन की पहचान छीन ली जा रही है।

साभार:- amar ujala

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...