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समानता, सम्मान और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं पर हर इंसान का अधिकार है। लेकिन क्या सच में ये अधिकार सबको मिल पाते हैं? आज भी कई ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने स्कूल की सीढ़ियां कभी नहीं चढ़ी। ऐसे बच्चे, सड़क किनारे ही अपना पूरा जीवन बिता देते हैं। देश में शिक्षा से जुड़ी कई नीतियों और नियम-कानून के होते हुए भी, ये बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाते हैं। ऐसे ही 42 बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया है ‘स्नेहग्राम’ विद्यालय ने। और उन बच्चो को शिक्षा भी दिलवाया आईये जानते है पूरी विस्तार से….

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साल 2015 में बार्शी, महाराष्ट्र के एक शिक्षक दंपति, महेश और विनया निम्बालकर ने ‘स्नेहग्राम’ स्थापना की थी। हालांकि, इस संस्थान की स्थापना से पहले ये दोनों एक सरकारी स्कूल में पढ़ाया करते थे। लेकिन कहते हैं न, कभी एक छोटी सी घटना की वजह से इंसान के जीवन में बड़े बदलाव आ जाते हैं। ऐसा ही कुछ इनके साथ भी हुआ। आज ये दोनों अपनी-अपनी नौकरी छोड़कर, जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दे रहे हैं।

उन्होंने शैक्षणिक सत्र 2014-15 में सोलापुर के ही खांडवी गांव में किराए पर एक जगह लेकर, स्कूल की शुरुआत की। उस वक्त स्कूल में 25 बच्चे थे। एक साल बाद, उन्हें वहां किराया बढ़ाने को कहा गया जो उस समय उनके बस की बात नहीं थी।इसलिए उन्होंने 2016 में, शिक्षक संघ से लोन लेकर और अपनी पत्नी के कुछ गहने बेचकर कोरफले गांव में तीन एकड़ जमीन खरीदी। वह उस जमीन पर बच्चों के लिए एक कमरा बनाना चाहते थे।

साभार :- thebetterindia .com

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...