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अपने फेवरेट स्नैक्स को लेकर हम काफी सजग होते हैं आखिर टेस्ट का मामला होता है। कोई स्नैक जो हमारे जुबान की पसंद बन जाता है वो हमारा फेवरेट होता है। और फिर क्या उसके आगे हमें दूसरा कुछ भी नहीं भाता। बात करें अगर नमकीन की तो लगभग हर परिवार में सुबह के नाश्ते और शाम की चाय के साथ इसकी डिमांड होती है। इसलिए तो आपकी पसंद के मुताबिक बाजार में तरह – तरह के नमकीन मौजूद हैं। जिनमें कई फेमस ब्रांड्स का दबदबा है।

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लेकिन हम जिस नमकीन के ब्रांड के बारे में बता रहें है वो एक क्षेत्रीय नमकीन ब्रांड है। जो बहुत ही कम समय में मार्केट में अपना यूएसपी बना चुका है। शायद कई लोगों ने अभी तक इस ब्रांड का नाम भी नहीं सुना होगा लेकिन बता दें यह कंपनी आज सालाना 850 करोड़ रुपये का टर्नओवर कर रही है। इंदौर स्थित स्नैक फूड कंपनी प्रताप नमकीन ने जब नमकीन के रिंग्स बनाने शुरू किये तो उन्हें भी मालूम नहीं था कि एक दिन वे इस सेगमेंट के अग्रणी कंपनियों में से एक होंगे।

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साल 2003 में अमित कुमात और अपूर्व कुमार ने अपने दोस्त अरविंद मेहता के साथ मिलकर इस कंपनी की नींव रखी थी और आज यह देशभर में चार कारखानों के साथ 24 राज्यों में 168 स्टोर हाउस और 2,900 वितरकों का एक विशाल नेटवर्क बन चुका है।

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एक स्नैक्स कंपनी में 10 वर्ष तक काम काम करने के बाद, अमित ने साल 2001 में कारोबारी जगत में घुसने का फैसला लिया। केमिकल मैन्युफैक्चरिंग का व्यवसाय शुरू करने के एक साल के भीतर ही कंपनी के ऊपर 6 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया और फिर उन्होंने कारोबार बंद करने का निश्चय किया।

शुरूआती असफलता से उन्हें बेहद धक्का लगा। उन्होंने न केवल अपनी सारी बचत गवा दी बल्कि इंदौर क्षेत्र के अपने साथी व्यापारियों के बीच सम्मान भी खो दिया। किसी तरह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार लेकर सारे लेनदारों का भुगतान किया। लेकिन अमित अपना खुद का बिज़नेस एम्पायर बनाने के सपने को इतनी आसानी से छोड़ने वाले नहीं थे।

साल 2002 में उन्होंने अपने भाई अपूर्व और मित्र अरविंद से इंदौर क्षेत्र में नमकीन का व्यवसाय शुरू करने का आइडिया साझा किया। तीनों ने अपने परिवार वालों पर काफी दबाव बनाने के बाद 15 लाख रुपये इकट्ठा कर प्रताप स्नैक्स के रूप में अपने सपने की नींव रखी।

कारोबार की शुरुआत करने के लिए उन्होंने एक स्थानीय खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) और विनिर्माण संयंत्र (manufacturing plant) में रिंग स्नैक्स के कुल 20,000 बक्से का आर्डर दिया। शुरुआती दिनों के दौरान, वे उत्पादन को स्थानीय निर्माताओं से ही ख़रीदा करते और अपना सारा ध्यान मजबूत वितरण नेटवर्क के तरफ रखा। कम पूंजी की वजह से उनके पास सीमित उपकरण थे और साथ ही संयंत्र लगाने के लिए प्रयाप्त जगह भी नहीं थी। बावजूद पहले साल कंपनी ने कुल 22 लाख रुपये बनाये, दूसरे साल यह लाभ 1 करोड़ रुपये तक पहुँच गया और तीसरे साल तो टर्नओवर 7 करोड़ के पार रहा।

एक छोटे से शहर से निकलकर नेशनल लेवल पर बिजनेस करते हुए कई दिग्गज ब्रांड्स को कॉम्पटीशन देना आसान नहीं था लेकिन कड़ी मेहनत और जज्बे से आज वह सफलता की उचाई पर पहुंच गए हैं।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...