aeb6d8f9 6e8b 42c5 9a6f 578c52bacb259 3

हमारे देश भारत में जहां एक और सरकारी परीक्षाओं में धांधली या फिर Question पेपर लीक होने की खबरें या फिर सॉल्वर गैंग जैसी घटना सामने आती रहती है, वही दूसरी ओर हमारे देश में कुछ ऐसी भी संस्थाएं हैं, जो अभी तक परीक्षार्थियों और लोगों के बीच एग्जामिनेशन प्रोसेस और रिजल्ट प्रोसेस की विश्वसनीयता बनाई हुई है। UPSC (Union Public Service Commission) अभी भी हमारे देश का एक ऐसा प्रतिष्ठित एग्जामिनेशन सिस्टम है, जो हमें यह विश्वास दिलाता है कि अगर हम सच्चे मन से पढ़ाई करें तो इस परीक्षा में बिना किसी उलटफेर या बिना किसी धांधलीबाजी के भी उत्तीर्ण हो सकते हैं।

संघर्ष से ही सफलता मिलती है। ऐसी ही एक संघर्ष की कहानी है IAS ( Indian Administrative Service ) Maniram Sharma की। आईएएस मनीराम शर्मा काफी कठिन परिश्रम करके यूपीएससी (UPSC – Union Public Service Commission) एग्जामिनेशन को क्रैक किया और आईएएस ( IAS – Indian Administrative Service ) बने और अपने माता-पिता का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया। आइए विस्तार से जानते हैं आईएएस ( IAS – Indian Administrative Service ) मनीराम शर्मा की संघर्ष की कहानी।

आईएएस ( IAS – Indian Administrative Service ) मनीराम शर्मा मूलतः राजस्थान के अलवर जिले के रहने वाले हैं। आईएएस ( IAS – Indian Administrative Service ) मनीराम शर्मा का जन्म 1975 में बंधनगाडी नामक एक गांव में हुआ था। आईएस ( IAS – Indian Administrative Service ) मनीराम शर्मा ( Maniram Sharma ) अत्यंत गरीब परिवार से आते हैं। पिता मजदूरी करके घर चलाते थे। पारिवारिक संकट इतना था कि पिता तो मजदूर थे ही साथ के साथ आईएएस मनीराम शर्मा की माता दृष्टिहीन थी।

( IAS – Indian Administrative Service ) मनीराम शर्मा के पिता बताते हैं की मनीराम का जन्म एक स्वस्थ बच्चे की तरह हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ने लगी वैसे-वैसे पता चला कि मनीराम सुन नहीं सकता। डॉक्टर के चेकअप के बाद पता चला कि अगर ऑपरेशन करा दिया जाए तो सुनने की क्षमता आ सकती है। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण ऑपरेशन हो ना सका और मनीराम आगे की जिंदगी जीने लगे अपने बहरेपन के साथ। मनीराम की पिता अक्सर कहा करते थे, कि वह अपने इस शारीरिक कमी पर ज्यादा ध्यान ना दें और पढ़ाई पर ध्यान दें क्योंकि पढ़ाई और परिश्रम से ही सफलता मिलती है। और ऐसा ही हुआ मनीराम ने अपनी शारीरिक कमी को नजरअंदाज करते हुए परिश्रम और पढ़ाई का रास्ता चुना और कठिन हालातों से लड़कर कामयाबी हासिल की और आईएएस अधिकारी बनकर अपने पिता का नाम रोशन किया।

( IAS – Indian Administrative Service ) मनीराम के गांव में कोई स्कूल ना था | फिर भी वह गांव से बाहर 5 किलोमीटर पैदल चलकर रोज स्कूल जाया करते थे। जब पिता सुबह मजदूरी करने के लिए निकलते तो मनीराम भी साथ में स्कूल जाने के लिए निकलते और दोनों एक साथ घर से कुछ दूर साथ चलते और फिर एक आदमी कमाने के लिए जाता और दूसरा आदमी पढ़ने के लिए स्कूल चला जाता और इसी तरह जिंदगी आगे बढ़ने लगी। आईएएस( IAS – Indian Administrative Service ) मनीराम शर्मा ( Maniram Sharma ) पढ़ाई-लिखाई में अच्छे थे | उनका पढ़ाई-लिखाई में खूब मन लगता था। स्कूल के हेड मास्टर अक्सर मनीराम की तारीफ किया करते थे | और कहते थे यह लड़का आगे चलकर बहुत बड़ा आदमी बनेगा।

लगनशील और मेहनतकश मनीराम ( IAS Maniram Sharma ) की मेहनत आखिरकार रंग लाई और राजस्थान राज्य शिक्षा बोर्ड की दसवीं परीक्षा में पांचवा और 12वीं परीक्षा में सातवां रैंक हासिल किया। दसवीं क्लास में अच्छे नंबर से पास होने के बाद मनीराम की पिता बहुत खुश हुए और उनको आशा की किरण दिखी। मनीराम की पिता ने सोचा इतने अच्छे नंबर लाने के बाद इसे कोई चपरासी की नौकरी तो दे ही देगा | और इस प्रकार वह अपने बेटे मनीराम को एक अधिकारी के दफ्तर में लेकर गए। उस अधिकारी ने पिता से कहा मनीराम सुन नहीं सकता है, इसीलिए मनीराम चपरासी की नौकरी के काबिल नहीं है | क्योंकि चपरासी की नौकरी के लिए सुनने की शक्ति होना बहुत जरूरी है। और इस प्रकार मनीराम को चपरासी की भी नौकरी नहीं मिली। इस बात से पिता काफी उदास हुए और उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने सोचा कि अगर चपरासी का भी नौकरी नहीं मिल सकता तो आगे चलकर पता नहीं मनीराम क्या करेगा। मगर मनीराम ने कहा की पिताजी आप मुझ पर भरोसा रखो मैं मेहनत करके एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनूंगा।

IAS Maniram Sharma आगे की पढ़ाई करने लगे। ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च खुद ही उठाने लगे। पिता पर बोझ डालना उन्हें मंजूर न था। कॉलेज के दूसरे साल में ही मनीराम को क्लर्क की नौकरी मिल गई। अब मनीराम कॉलेज भी करने लगे और क्लर्क की नौकरी भी करने लगे। लेकिन उनके मन में एक यह बात थी कि 1 दिन आईएस बनूंगा। क्लर्क की नौकरी करते-करते उन्होंने NET का एग्जाम दिया और उसको भी क्वालीफाई कर गए। अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से मनीराम ने PHD भी पूरा कर लिया। IAS Maniram Sharma अब धीरे-धीरे सफलता की ओर बढ़ने लगे थे।

साल 1995 में पहली बार उन्होंने यूपीएससी (UPSC – Union Public Service Commission) का एग्जाम दिया और प्रीलिम भी पास नहीं कर पाए। लेकिन उनके मन में कहीं न कहीं यूपीएससी (UPSC – Union Public Service Commission) आईएएस ( IAS – Indian Administrative Service ) घूम रहा था कि उन्हें आईएएस बनना है और वह मेहनत करने में लग गए और आईएएस की तैयारी करने लगे। काफी लगन और मेहनत से पढ़ने लगे।

2000 का दशक शुरु हो चुका था। दुनिया काफी तेजी से बदल रही थी। आखिरकार सफलता रंग लाई और 2005 के यूपीएससी (UPSC – Union Public Service Commission) एग्जाम में उन्हें सफलता मिली। लेकिन फिर भी खराब किस्मत पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी और 100% बहरापन के कारण उन्हें जॉब नहीं मिली। साल 2006 में भी उन्होंने यूपीएससी (UPSC – Union Public Service Commission) का एग्जाम दिया और उन्हें फिर से सफलता मिली । लेकिन एक बात उन्हें समझ में आ गई थी कि जब तक अपनी शारीरिक अक्षमता का इलाज नहीं करवा लेते तब तक आगे की जिंदगी मुश्किल ही रहेगी।

फिर IAS Maniram Sharma ने कुछ जाने-माने डॉक्टर से कंसल्ट किया और अपने बहरेपन के इलाज के बारे में बात किया। डॉक्टरों के सलाह मशवरा से पता चला कि उनके बहरेपन का इलाज हो सकता है | और एक ऑपरेशन से उनके सुनने की शक्ति वापस आ सकती है। फिर उन्होंने कुछ पैसे इकट्ठे करके डॉक्टर के कहने पर अपने कान का ऑपरेशन करवाया और वह बिल्कुल स्वस्थ हो गए। अब मनीराम सुन सकते थे ।

साल 2009 में उन्होंने पुनः यूपीएससी (UPSC – Union Public Service Commission) का एग्जाम दिया और फिर से पास कर गए और आईएएस ( IAS – Indian Administrative Service ) बने। इस प्रकार मनीराम की 15 साल की मेहनत, लगन, कठिन परिश्रम करने के बाद उन्हें सफलता मिली | अंततः IAS मनीराम अपना लक्ष्य हासिल किए और आईएएस ऑफिसर बने। आईएएस मनीराम की 15 साल की संघर्ष की कहानी अक्सर उन लोगों को प्रेरणा देती है, जो शारीरिक रूप से असक्षम हैं, और सोचते हैं कि अब वह जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते। उन लोगों से मेरा यही आग्रह है कि हिम्मत ना हारे, मेहनत करते रहे , चाहे कितनी भी मुश्किल दिन क्यों ना आए, सफलता जरूर मिलेगी।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...