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रिया चक्रवर्ती की फिल्म चेहरे की हो रही बायकॉट मूवी ना देखने वाले लोग ये चीजें करेंगे मिस

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सोशल मीडिया पर जाने-मने बॉलीवुड क्वीन रिया चक्रवर्ती की लोग बायकॉट बहुत दिनों से चल रही है | जबसे सुशांत सिंह राजपूत की मौत हुयी है उसी दिन से इंटरनेट पर एक धड़ा रिया चक्रवर्ती के बहाने चेहरे का विरोध कर रहा है |

इंटरनेट की तमाम ऑडियंस रिव्यू में लोग रिया की वजह से चेहरे को लेकर बुरा भला लिखते नजर आ रहे हैं. ज्यादातर लोग सिर्फ रिया के विरोध की वजह से चेहरे को खारिज कर रहे हैं वो कई चीजें मिस कर सकते हैं. दरअसल, चेहरे रिया की फिल्म है ही नहीं |

अमिताभ बच्चन-इमरान हाशमी स्टारर कोर्ट रूम ड्रामा मिस्ट्री थ्रिलर “चेहरे” सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. चेहरे की सपोर्टिंग कास्ट में धृतिमान चटर्जी, रघुवीर यादव, अन्नू कपूर के साथ रिया चक्रवर्ती भी हैं. फिल्म का निर्देशन रूमी जाफरी ने किया है. रूमी ने बॉलीवुड की कई सुपरहिट कॉमेडी ड्रामा की कहानियां लिखी हैं. अक्षय खन्ना के साथ एक कॉमेडी ड्रामा का निर्देशन भी कर चुके हैं |

बतौर निर्देशक चेहरे उनके लिए एक नया टॉपिक है. सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या केस और ड्रग कंट्रोवर्सी की वजह से निर्माताओं ने रिया चक्रवर्ती को प्रमोशन से दूर ही रखा है. ट्रेलर में एक पल के लिए उनकी झलक दिखी थी. सोशल मीडिया पर भी रिया ने निजी तौर पर फिल्म के प्रमोशन से दूरी बना रखी है. हालांकि ऐसा सिर्फ इसलिए है ताकि सुशांत के समर्थक फिल्म का निगेटिव कैम्पेन ना करें.

हालांकि ऐसा दिख नहीं रहा है. इंटरनेट पर एक धड़ा रिया चक्रवर्ती के बहाने चेहरे का विरोध कर रहा है. इंटरनेट की तमाम ऑडियंस रिव्यू में लोग रिया की वजह से चेहरे को लेकर बुरा भला लिखते नजर आ रहे हैं.

ज्यादातर लोग सिर्फ रिया के विरोध की वजह से चेहरे को खारिज कर रहे हैं वो कई चीजें मिस कर सकते हैं. दरअसल, भले ही चेहरे में रिया भूमिका निभा रही हैं मगर सिर्फ इतने भर से ये उनकी फिल्म नहीं हो जाती. वो एक मामूली भूमिका में हैं. उनके किरदार का फिल्म की कहानी से कोई संबंध स्थापित नहीं कर पाता. बस थ्रिल और सस्पेंस के लिए उनके कुछ फ्रेम हैं. रिया नहीं भी होती तो चेहरे की पटकथा पर कोई असर नहीं पड़ सकता था |

चेहरे में अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी ने कोई महान काम नहीं किया है. बावजूद दोनों स्क्रीन पर खटकते नहीं. वैसे चेहरे का पूरा दारोमदार इन दोनों अभिनेताओं के कंधे पर ही है. अमिताभ बच्चन, रिटायर्ड पब्लिक प्रोक्सीक्यूटर लतीफ़ जैदी की भूमिका में हैं. वे दिल्ली से बहुत दूर सुनसान बर्फीले पहाड़ों में रहते हैं |

यहां उनके पेशे से जुड़े तीन और दोस्त भी रहते हैं जिनमें एक जज, एक डिफेंस लायर और एक जल्लाद है. जबकि इमरान हाशमी समीर मेहरा की भूमिका में हैं. समीर कामयाब युवा कॉरपोरेट हैं. उन्हें लग्जरी पसंद है और सफलता की ओर भागते हैं. उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं. दोनों का लुक बहुत असरदार है |

लेकिन जबरदस्त पंच के साथ. पंजाबी टोन में ठहरकर जब वो संवाद बोलते हैं तो बरबस तालियां बजाने को जी करता है. वो जब भी फ्रेम में होते हैं, असरदार और मनोरंजक दिखाते हैं |

सपोर्टिंग कास्ट में जल्लाद हरिया की भूमिका में रघुवीर यादव हैं. चारों बुजुर्ग दोस्तों में रघुवीर के हिस्से बहुत कम संवाद हैं. वो चुप एक कोने में सोफे पर बैठकर बांसुरी बजाते दिखते हैं. उनका लुक दूसरे किरदारों से बिलकुल अलग दिखता है |

चेहरे की कहानी का एक हीरो तो असल में उसके संवाद भी हैं. वैसे भी कोर्ट रूम ड्रामा में संवादों की ही अहमियत होती है. संवाद ही कहानियों को आगे बढ़ाते हैं. फिल्म के संवाद रंजित कपूर के साथ खुद रूमी जाफरी ने लिखे हैं. निश्चित ही बढ़िया. शेरो शायरी भी खूब है. बहुत दिनों बाद उम्दा संवाद सुनने को मिलते हैं. इसे दर्शक खुद भी महसूस कर सकते हैं. हां आखिर में अमिताभ का मोनोलॉग विषय से भटका नजर आता है |

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