असंभव…! यह शब्द सुनने में काफ़ी कठोर लगता है। मानों इसके बाद अब कुछ भी सम्भव नहीं और इतना ही नहीं इस शब्द के आगे अच्छे-अच्छे लोग घुटने टेक देते हैं। लेकिन हम आपको बता दें कि असल में असंभव शब्द का मोल उस समय तक ही है जब तक इंसान हार न मान ले। परंतु, जो इसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ता है वो मिसाल कायम कर देता है। ऐसी ही मिसाल के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जन्म के बाद पिंगलवाड़ा में पले और एक ही शरीर से जुड़े दो भाई सोहणा-मोहणा।
पिंगलवाड़ा में पले-बढ़े सोहणा मोहणा आज 18 साल के हो चुके हैं। उन्होंने इलेक्ट्रिकल डिप्लोमा करने के बाद पंजाब पावरकाम में जेई पद के लिए आवेदन भी किया है, लेकिन उनको दिव्यांगता प्रमाणपत्र नहीं मिल रहा है। क्युकी हमारे यहां एक जिस्म दो जान जैसे मामले में दिव्यांगता प्रमाणपत्र जारी करने का प्रावधान नहीं है। जिसके कारण उन्हें यह प्रमाणपत्र नहीं मिल पा रहा है।
सोहणा-मोहणा ने पंजाब पावरकाम में जूनियर इंजीनियर की एक पोस्ट के लिए अलग-अलग आवेदन दिया है। अब यहां समस्या यह है की किसको नौकरी दे और किसको नहीं। यदि एक को नौकरी मिलती है तो दूसरा भी साथ जाएगा, ऐसे में क्या दोनों एक ही नौकरी पर साथ काम करेंगे या दोनों के लिए अलग-अलग पोस्ट बनानी पड़ेगी यह एक समस्या है।
शारीरिक विकृति की वजह से विषम परिस्थितियों का सामना करने वाले सोहणा-मोहणा को यदि यह प्रमाणपत्र मिल जाता है, तो उन्हें सरकारी नौकरी मिल सकती है। लेकिन इसमें उनके सामने मुश्किल आ रही है। दोनों का मेडिकल फिटनेस टेस्ट अमृतसर के सरकारी मेडिकल कालेज में किया गया है। ब्लड ग्रुप ‘ओ पाजिटिव’ है। दिव्यांगता की जांच करने के लिए डाक्टरों का बोर्ड बनाया गया।
14 जून, 2003 को दिल्ली के सुचेता कृपलानी अस्पताल में जन्मे सोहणा और मोहणा को माता-पिता ने छोड़ दिया था। उन्हें उसके बाद पिंगलवाड़ा की मुख्य सेवादार बीबी इंद्रजीत कौर दोनों को पिंगलवाड़ा ले आई थीं। देखरेख के लिए नर्सिंग सिस्टर तैनात की गई। डाक्टरों ने कहा था कि दोनों ज्यादा समय जिंदा नहीं रहेंगे, लेकिन वह आज बालिग हो गए है।