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संघर्ष इतने ख़ामोशी से करना चहिये की सफलता शोर मचा दे | दिव्यान्गता कोई अभिशाप नहीं | शारीरिक अक्षमता ऊपर वाले की देन है | इससे कभी मन दुखी नहीं करनी चाहिए | जो लोग एकाग्र होकर संघर्ष करते है वे जिंदगी का हर मुकाम पा सकते है | चाहे वो दिव्यांग ही क्यों न हो | ऐसा ही संघर्ष की कहानी है तमिलनाडु के डी रंजित की |

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आईएएसई डी रंजीत का जन्म तमिलनाडु केकोयंबटूर में एक सिंपल परिवार में हुआ | सुनने और बोलने में अक्षम कोयंबटूर के 27 वर्षीय दिव्यांग उम्मीदवार ने संघ लोक सेवा आयोग UPSC के अपने पहले प्रयास में कठिन सिविल सेवा परीक्षा में 750वां रैंक हासिल कर अपनी उपलब्धियों को बयां किया। IAS D. Ranjit का यह सफ़र बिलकुल आसन न था , उन्हें इस सफ़र के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा |

रंजित ने 12वीं की पढाई दिव्यांग केटेगरी के बच्चो में किया था | 12वीं में रंजित स्टेट टोपर रहा था | पुरे तमिलनाडु में सबसे ज्यादा अंक लाने से मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा 50 हजार रूपये का इनाम भी मिला | बोलने और सुनने में असमर्थ रंजित को उसकी माँ ने काफी मदद किया | माँ ने ही लिप रीडिंग करना सिखाया ताकि उनके बेटे का जीवन आसान हो जाए |

रंजीत की मां अमृतवल्ली ने बताया कि वह रंजित को मिली सफलता पर बहुत खुश और हैरानी भी है। आगे उन्होंने बताया की हमारे परिवार में किसी को नहीं पता था की कि दिव्यांग व्यक्ति भी यूपीएससी परीक्षा में शामिल हो सकता है। 12वीं की अजीम सफलता के बाद रंजित ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।

मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक इंजीनियरिंग के बाद रंजित का प्लेसमेंट नहीं हो सका | वो सभी काम करने के लिए समर्थ थे लेकिन प्राइवेट कंपनी ने उनकी दिव्यन्गता की आड़ में जॉब की एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दिया | जॉब न मिलने से रंजित काफी दुखी हुए | माँ ने हौसला दिया और कहा प्राइवेट नौकरी नहीं मिली तो क्या हुआ आप UPSC की तैयारी कीजिये |

फिर रंजित ने तत्काल संघ लोक सेवा आयोग UPSC की तैयारी में लग गए | यूपीएससी की तैयारी के लिए उन्हें घर से दूर चेन्नई में कोचिंग के लिए जाना पड़ा। उन्होंने पढ़ाई भी तमिल भाषा में की थी और सिविल सेवा की परीक्षा भी उन्होंने तमिल भाषा में ही दी। जिसके बाद पहली प्रयास में उन्होंने सफलता हासिल कर ली।

सोनू मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिला के रहने वाले है पिछले 4 साल से डिजिटल पत्रकारिता...